ब्रज में हुरियारिनों को ढूंढ रहें हुरियारें… महिलाएं बरसा रहीं लठ्ठ

Seema Pal

मथुरा : कल से होलाष्टक लग चुका है यानी होली की शुरूआत हो गई है। होली 13 मार्च को जलेंगी और 14 मार्च को रंगोत्सव होगा। विश्व प्रसिद्ध मथुरा के ब्रज में होलाष्टक के साथ ही होली पर्व की शुरुआत हो जाती है। कल मथुरा के ब्रज में लड्डूमार होली खेलने के साथ ही होली पर्व का आगाज हो गया। आज ब्रज में लठ्ठमार होली खेली जा रही है।

कहते हैं कि होली के रंग अगर देखने हों तो एक बार मथुरा जरूर जाएं। क्योंकि मथुरा में आज भी यहां होली में लोग पारंपरिक रंगों में रंगे दिखाई देते हैं। बड़े और बच्चे तो होली के जश्न में डूबे दिखाई देते ही हैं, लेकिन मथुरा में होली हुरियारिनों से जानी जाती हैं। जब हुरियारे अपनी हुरियारिनों को ढूंढ कर उन्हें रंग लगाते हैं और हुरियारिन उनपर लठ्ठ यानी डंडे बरसाती हैं और इसे लठ्ठमार होली कहते हैं।

मथुरा के ब्रज में हर साल होली का त्यौहार कुछ खास तरीके से मनाया जाता है। लट्ठमार होली  ब्रज की संस्कृति का अभिन्न हिस्सा बन चुकी है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस अनोखी परंपरा की शुरुआत कैसे हुई थी?” तो बता दें कि “लट्ठमार होली की परंपरा का संबंध भगवान श्री कृष्ण और राधा के साथ जुड़ा हुआ है।

ब्रज के गांवों में, खासकर बरसाना और नंदगांव में, राधा और उनके साथियों के साथ श्री कृष्ण ने होली खेली थी। एक दिन, श्री कृष्ण ने राधा और उनकी सखियों के साथ होली खेलने का मन बनाया। लेकिन कृष्ण, अपनी शरारतों के लिए प्रसिद्ध थे। उन्होंने राधा और उनकी सखियों को परेशान करना शुरू कर दिया, और फिर क्या था, गोपियाँ गुस्से में आ गईं। राधा की सखियों ने कृष्ण को सजा देने के लिए उन्हें लाठियों से मारना शुरू कर दिया। इसी शरारत और प्यार की भावना से प्रेरित होकर, आज भी ब्रज में लट्ठमार होली खेली जाती है। यहाँ के लोग, खासतौर पर महिलाएं, पुरुषों को लाठियाँ मारती हैं, और ये सब खेल एक मजेदार और आनंदमयी तरीके से होता है।

लट्ठमार होली का खेल सिर्फ एक परंपरा नहीं है, बल्कि यह हमारे लोक जीवन, धार्मिक आस्था और सांस्कृतिक धरोहर का हिस्सा बन चुका है। यह होली का वह रूप है, जो प्रेम और शरारत की भावना को व्यक्त करता है। यह खेल केवल एक दिन का नहीं है। बरसाना और नंदगांव में लट्ठमार होली की शुरुआत होली के कुछ दिन पहले से ही हो जाती है। यह अनोखा उत्सव, रंगों और हंसी-खुशी से भरपूर होता है। पुरुष अपनी रक्षा के लिए ढाल की तरह छाती पर लकड़ी या बांस की छड़ी का प्रयोग करते हैं, जबकि महिलाएं उन्हें लाठियाँ मारती हैं।

लट्ठमार होली का मुख्य आकर्षण है इसकी अद्भुत रसमयता, जहाँ परंपरा और आधुनिकता का संगम होता है। यहाँ की होली का नजारा बिल्कुल अलग है, और इसका माहौल ही कुछ खास होता है।

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