हाथरस भगदड़ कांड में जादू-टोना और अंधविश्वास, न्यायिक आयोग ने कहा- कठोर कानून बने

लखनऊ । हाथरस में पिछले वर्ष साकार नारायण विश्व हरि के सत्संग के दौरान हुई भगदड़ की जांच के लिए गठित न्यायिक आयोग ने इस घटना से जुड़े विभिन्न पहलुओं की गंभीरता से जांच की और महत्वपूर्ण सिफारिशें की हैं। आयोग ने न केवल घटनास्थल पर हुई लापरवाही और प्रशासन की भूमिका पर सवाल उठाए हैं, बल्कि उसने भविष्य में ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए कई उपाय सुझाए हैं।

घटनास्थल पर लापरवाही और प्रशासनिक चूक

रिपोर्ट में यह स्पष्ट किया गया है कि इस घटना के समय पुलिस प्रशासन ने पूरी व्यवस्था सेवादारों के भरोसे छोड़ दी थी, जो न प्रशिक्षित थे और न ही वे उचित सुरक्षा व्यवस्था को लागू करने में सक्षम थे। सत्संग में बढ़ते श्रद्धालुओं के कारण जब स्थिति बेकाबू हो गई, तो आयोजकों के सेवादार मौके से भाग गए और पुलिस को कार्यक्रम स्थल पर जाने से भी रोका। इससे प्रशासन की निष्क्रियता और लापरवाही सामने आई। जांच में यह बात भी सामने आई कि पुलिस और प्रशासन के अधिकारी आयोजन स्थल का निरीक्षण करने नहीं गए थे, और न ही सुरक्षा व्यवस्था को लेकर कोई दिशा-निर्देश दिए गए थे।

अंधविश्वास और जादू-टोना पर कड़ी कार्रवाई की सिफारिश

आयोग ने यह भी कहा कि अंधविश्वास, जादू-टोना, तंत्र-मंत्र और चमत्कारी उपचार के नाम पर होने वाले आयोजनों की रोकथाम के लिए कड़े कानून बनाने की आवश्यकता है। रिपोर्ट में यह सुझाव दिया गया कि किसी भी धार्मिक आयोजन से पहले आयोजकों की सामाजिक स्थिति और आपराधिक इतिहास की जांच की जाए, ताकि कोई भी व्यक्ति या संगठन श्रद्धालुओं को धोखा न दे सके। इसके अलावा, आयोजनों में तंत्र-मंत्र या अन्य धार्मिक धोखाधड़ी को बढ़ावा देने वाले कार्यों पर भी पूरी तरह से प्रतिबंध लगाया जाए।

सुरक्षा व्यवस्था और आयोजकों की जिम्मेदारी

आयोग ने सुरक्षा व्यवस्था को लेकर सख्त दिशा-निर्देश दिए हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि बड़े आयोजनों के लिए अनुमति देने से पहले आयोजन स्थल का समग्र निरीक्षण किया जाए, जिसमें पुलिस, प्रशासन, स्वास्थ्य, अग्निशमन, विद्युत, यातायात आदि सभी संबंधित विभागों के अधिकारी शामिल हों। इसके साथ ही, आयोजकों को किसी भी प्रकार के उल्लंघन के लिए जिम्मेदार ठहराया जाए और कार्यक्रम से पहले एक शपथ पत्र लिया जाए। इसके अलावा, आयोजकों द्वारा सुरक्षा व्यवस्था की पर्याप्त जानकारी देने और उसकी पूरी तैयारी सुनिश्चित करने की सिफारिश भी की गई है।

रिपोर्ट में उल्लेखित अन्य घटनाएं

रिपोर्ट में हाथरस कांड के अलावा अन्य घटनाओं का भी जिक्र किया गया है, जैसे कि 2016 में वाराणसी में जयगुरुदेव संगत के आयोजन में भगदड़ की घटना, जिसमें 25 लोगों की जान गई थी, और मथुरा के जवाहरबाग कांड का भी हवाला दिया गया है। इन घटनाओं में भी प्रशासन और पुलिस की लापरवाही देखने को मिली थी, जिससे ये घटनाएं घटित हुईं।

पुलिस प्रशासन की लापरवाही

रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि पुलिस और प्रशासन के अधिकारियों ने सुरक्षा प्रबंधों को लेकर कोई गंभीरता नहीं दिखाई। आयोजन स्थल पर पुलिसकर्मियों की संख्या बहुत कम थी, और भीड़ बढ़ने के बावजूद पुलिस ने स्थिति पर नियंत्रण नहीं पाया। इसके अलावा, पुलिस ने आयोजकों द्वारा निर्धारित सुरक्षा प्रबंधों की कोई जांच नहीं की और न ही किसी प्रकार की प्राथमिक चिकित्सा या सुरक्षा उपायों की व्यवस्था की।

न्यायिक आयोग की सिफारिशें:

आयोग ने कई महत्वपूर्ण सिफारिशें की हैं:

  1. आयोजन की अनुमति: जहां 50,000 से अधिक श्रद्धालु आने की संभावना हो, वहां डीएम द्वारा अनुमति दी जाए, और 50,000 से कम लोगों के लिए एडीएम द्वारा अनुमति दी जाए।
  2. सुरक्षा व्यवस्था: आयोजन स्थल पर सीसीटीवी कैमरे, ड्रोन और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का उपयोग किया जाए। इसके साथ ही, पुलिस रेडियो कंट्रोल रूम की स्थापना भी अनिवार्य की जाए।
  3. समानांतर सुरक्षा व्यवस्था की समाप्ति: कोई भी आयोजन यदि सरकारी सुरक्षा व्यवस्था को चुनौती देता है, तो उस व्यवस्था को तुरंत समाप्त किया जाए।
  4. आयोजकों की जिम्मेदारी: आयोजकों को शपथ पत्र और बंधपत्र लेना अनिवार्य किया जाए, और किसी भी प्रकार की लापरवाही के लिए उन्हें जिम्मेदार ठहराया जाए।

इस रिपोर्ट से यह स्पष्ट है कि हाथरस में हुई भगदड़ की घटना के पीछे प्रशासन और आयोजकों की भारी लापरवाही थी। इस घटना में 121 लोगों की जान गई थी, जो कि पूरी तरह से अनावश्यक थी। यदि प्रशासन ने समय रहते उचित कदम उठाए होते, तो यह हादसा टल सकता था। अब आयोग ने इस प्रकार की घटनाओं को रोकने के लिए कड़े कानूनों और बेहतर सुरक्षा व्यवस्था की आवश्यकता को रेखांकित किया है। यह रिपोर्ट न केवल हाथरस कांड के लिए बल्कि भविष्य में होने वाले बड़े धार्मिक आयोजनों के लिए भी एक महत्वपूर्ण मार्गदर्शिका साबित हो सकती है।

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