
लखनऊ डेस्क। महिलाओं की सुरक्षा और उनके अधिकारों की रक्षा हर दिन की जानी चाहिए, और इसके लिए शासन और प्रशासन ने कई अहम कदम उठाए हैं। खासकर शादीशुदा महिलाओं के लिए कई महत्वपूर्ण कानूनी अधिकार बनाए गए हैं, ताकि वे किसी भी प्रकार के शारीरिक, मानसिक या पारिवारिक अत्याचार से बच सकें।
शादीशुदा महिलाओं को खासकर घरेलू हिंसा, तलाक, और संपत्ति जैसे मामलों में विशेष अधिकार दिए गए हैं, जो उन्हें सशक्त और सुरक्षित बनाते हैं। इस तरह के कानूनी अधिकारों की जानकारी होना जरूरी है ताकि महिलाएं अपने हक के लिए आवाज उठा सकें और किसी भी तरह के अत्याचार का सामना करने के दौरान उन्हें सहायता मिल सके।
अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर, यह जानना महत्वपूर्ण है कि महिलाओं के अधिकारों का उल्लंघन रोकने के लिए समाज, परिवार और सरकार को मिलकर काम करना चाहिए। महिला दिवस एक अवसर है यह याद दिलाने का कि महिलाएं समाज की बराबरी के हकदार हैं और उन्हें हर क्षेत्र में समानता और सुरक्षा मिलनी चाहिए।
शादी के बाद महिलाओं के पास कई महत्वपूर्ण कानूनी अधिकार होते हैं, जिन्हें जानकर वे अपने जीवन में सशक्त और सुरक्षित महसूस कर सकती हैं। यहां कुछ प्रमुख अधिकारों के बारे में बताया गया है:
तलाक का अधिकार:
हिंदू मैरिज एक्ट, 1955 के तहत एक महिला अपने पति से सहमति के बिना भी तलाक ले सकती है। यदि पति शारीरिक या मानसिक रूप से अत्याचार करता है, या बेवफा है, तो महिला उसके खिलाफ केस दर्ज कर सकती है और मेंटेनेंस चार्ज भी मांग सकती है।
स्त्रीधन का अधिकार:
महिला को शादी के बाद अपने पति द्वारा दिए गए या पति के नाम पर जमा किए गए स्त्रीधन पर अधिकार होता है। इसके अलावा, घरेलू हिंसा से बचाव के लिए महिला ‘The Protection of Women Against Domestic Violence Act’ के तहत शिकायत दर्ज कर सकती है।
बच्चे की कस्टडी का अधिकार:
शादीशुदा महिला को अपने बच्चे की कस्टडी का अधिकार है, विशेषकर जब बच्चा 5 साल से कम उम्र का हो। यह अधिकार उसे बच्चों की भलाई को ध्यान में रखते हुए मिलता है।
अबॉर्शन का अधिकार:
महिला को गर्भवती होने पर अपने गर्भ में पल रहे बच्चे को गिराने का अधिकार दिया गया है। इसके लिए उसे अपने पति की अनुमति की आवश्यकता नहीं होती। इसके अंतर्गत, एक महिला 24 सप्ताह से कम गर्भावस्था में अबॉर्शन करा सकती है।
संपत्ति का अधिकार:
हिंदू उत्तराधिकार कानून, 1956 के तहत, 2005 में हुए संशोधन के बाद, एक शादीशुदा महिला को अपने पिता की संपत्ति पर बराबरी का अधिकार मिलता है। साथ ही, महिला अपने पूर्व पति की संपत्ति पर भी अधिकार जता सकती है।
इन अधिकारों के माध्यम से महिलाएं अपने जीवन में आत्मनिर्भरता और सुरक्षा महसूस कर सकती हैं। इनका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि महिलाएं किसी भी प्रकार के अत्याचार और शोषण से बच सकें और उनका जीवन समानता और सम्मान से भरा हो।