KGMU: डॉ मोनिका कोहली बोलीं- नली निकालने में मोटापा और छोटी गर्दन हो सकते हैं जानलेवा

  • जबड़े की चोट में फाइबर ऑप्टिक ब्रोंकोस्कोप बचा सकता है जान: डॉ प्रेमराज सिंह

लखनऊ । किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी (KGMU), लखनऊ के एनेस्थीसिया और क्रिटिकल केयर विभाग ने एयरवे मैनेजमेंट फाउंडेशन (AMF) के सहयोग से एएमएफ एयरवे कार्यशाला 2025 का आयोजन किया गया।

डॉ . प्रेम राज सिंह ने बताया कि सांस का रास्ता जान बचाए रखने में सबसे अहम है। दो दिन तक चले मंथन में बहुत सी जानकारी साझा की गई। नई तकनीकों से जान बचाना बहुत हद तक संभव है। चोटिल व्यक्ति में मुंह से नली डालकर सामान्यतः सांस का प्रबंध किया जाता है। किंतु जबड़े की चोट में जबड़ा इस नली का भार नहीं उठा सकता। ऐसी अवस्था में बहुत कारगर है – fibreoptic bronchoscopy, इसमें नाक के सहारे छोटी नली सांस के रास्ते में डाल देते हैं। इसमें लगा कैमरा पूरा रास्ता देखने में सहायक है। इसको मॉनिटर पर connect भी किया जा सकता है। Fiber का बना होने से किसी भी जांच को यह प्रभावित नहीं कर सकता।

इसी प्रकार चोटिल रोगियों में वीडियो layngoscope की महत्त्वता बताते हुए कहा कि वीडियो से रास्ता साफ दिखता है। तरल पदार्थ, रुकावट या खून के थक्के को आसानी से निकाला जा सकता है। High pressure jet ventilation से रोगी को शीघ्रता से ऑक्सीजन पहुंचाई जाती है, जो गंभीर रोगियों के दिमाग को ऑक्सीजन की कमी से होने वाली चोट से बचाता है।

नली डालते हुए जख्म से रक्तस्राव के साथ साथ दांत टूट सकते हैं। कई स्थिति में नली निकालना भी बहुत जटिल होता है, जैसे मोटे लोग, छोटी गर्दन वाले लोग, छोटे बच्चे, जिनमें किसी कारण मुंह या गर्दन की सर्जरी हुई हो (कैंसर रोगी)। ऐसे में नली से निकले पदार्थ सांस के रास्ते में प्रवेश कर जाते हैं। इससे मृत्यु हो जाती है।

इस कार्यशाला का उद्घाटन केजीएमयू की कुलपति प्रो. सोनिया नित्यानंद ने किया। इस मौके पर डीन-अकादमिक्स प्रो. अमिता जैन, एएमएफ के निदेशक डॉ. राकेश कुमार, एनेस्थीसिया विभाग की प्रमुख एवं आयोजन अध्यक्ष डॉ. मोनिका कोहली, आरएमएलआईएमएस, लखनऊ के एनेस्थीसिया विभागाध्यक्ष डॉ. पी. के. दास, प्रो. ममता हरजाई और आयोजन सचिव डॉ. प्रेम राज सिंह सहित कई प्रतिष्ठित डॉक्टर और विशेषज्ञ मौजूद रहे।

इसके अलावा, सिमुलेशन मॉडल के जरिए प्रतिभागियों को आपातकालीन स्थितियों का वास्तविक अनुभव कराया गया, जिससे वे संकट के समय तेजी और आत्मविश्वास के साथ सही फैसला ले सकें।
इस कार्यशाला का नेतृत्व डॉ. राकेश कुमार ने किया, जिनके साथ देशभर के नामी चिकित्सा संस्थानों जैसे एम्स, पीजीआई चंडीगढ़, बीएचयू, दिल्ली, जम्मू और देहरादून के विशेषज्ञों ने मिलकर प्रतिभागियों को प्रशिक्षित किया। प्रमुख प्रशिक्षकों में डॉ. सुनील कुमार, डॉ. शक्ति दत्त शर्मा, डॉ. अनिल मिश्रा, डॉ. रेनू वाखलू, डॉ. रंजू सिंह, डॉ. नीरू गुप्ता कुमार, डॉ. भावना सक्सेना, डॉ. वीणा अस्थाना, डॉ. कविता मीना और डॉ. रीना शामिल रहे। इन विशेषज्ञों ने प्रतिभागियों को व्यावहारिक और सुलभ तरीके से आधुनिक तकनीकों का प्रशिक्षण दिया।

कार्यशाला के दौरान एक विशेष सेंसिटाइजेशन सत्र भी आयोजित किया गया, जिसमें रोगी सुरक्षा, नैतिक दायित्व और आपातकालीन चिकित्सा स्थितियों में टीमवर्क जैसे अहम विषयों पर चर्चा की गई। इस सत्र का उद्देश्य केवल तकनीकी कौशल बढ़ाना नहीं था, बल्कि यह भी सिखाना था कि संभावित जटिलताओं को कैसे रोका जाए और मरीजों को अधिक सुरक्षित इलाज कैसे दिया जाए।

खबरें और भी हैं...

अपना शहर चुनें

हिमंत बिस्वा शर्मा ने राहुल गांधी और ममता बनर्जी को कहा औरंगज़ेब पीएम मोदी ने सोमनाथ मंदिर में किया जलाभिषेक सिंगर हनी सिंह का लखनऊ में धमाकेदार कॉन्सर्ट नीतीश कुमार ने केक काटकर मनाया जन्मदिन मेडिकल कालेज से चोरी गया बच्चा बरामद