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नैमिषारण्य-सीतापुर। तपोभूमि नैमिषारण्य में आज फाल्गुन मास की अमावस्या के पावन पर्व पर बड़ी संख्या में प्रदेश और देश के विभिन्न भागों से आये श्रद्धालुओं, साधु संतों ने पावन चक्रतीर्थ और गोमती नदी के राजघाट, दशाश्वमेघ घाट, देवदेवेश्वर घाट पर स्नान दान कर बड़े ही आस्था भाव से तीर्थ धर्म की परम्परा का पालन किया। श्रद्धालुओं ने चक्रतीर्थ व गोमती नदी में स्नान, दान के बाद नैमिषारण्य स्थित माँ ललिता देवी, व्यास गद्दी, हनुमान गढ़ी, कालीपीठ, सूतगद्दी, देवदेवेश्वर, देवपुरी, कालीपीठ आदि मन्दिरों में दर्शन पूजन किया। आज श्रद्धालुओं के स्नान दर्शन का क्रम सुबह 3 बजे से ही प्रारम्भ हो गया था जो देर शाम तक चलता रहा। ज्ञात हो कि फाल्गुन मास की अमावस्या का अपना अलग ही आध्यात्मिक महत्व होता है अमावस्या के ठीक दूसरे दिन 15 दिवसीय रामादल परिक्रमा का नैमिष तीर्थ से प्रारम्भ होता है।
डंका बजते ही आस्था की डगर पर चल पड़ेगा रामादल
रामादल डंके की धुन के साथ सुबह 4 चार बजे से प्रति वर्ष की परम्परा के अनुसार यात्रा मार्ग पर विभिन्न देवदर्शन करते हुए प्रथम पड़ाव कोरौना पहुंचता है। इस अदभुद यात्रा में भाग लेने के लिए गृह प्रदेश के विभिन्न जनपद सहित पड़ोसी देश नेपाल, बांग्लादेश के साथ ही मध्य प्रदेश, राजस्थान, दिल्ली, हरियाणा, पंजाब आदि प्रदेशों से बड़ी संख्या में 27 और 28 फरवरी को श्रद्धालुगण नैमिष तीर्थ पहुँच चुके है और अब बस कुछ ही घण्टो बाद सोमवार सुबह इस पावन परिक्रमा का शंखनाद होने वाला है जिसका इंतजार इस अनोखी परिक्रमा में भाग लेने वाले हर सन्त, गृहस्थ, महिला और युवा को है।
ये है रीति व पहले पड़ाव के मध्य दर्शन
सबसे पहले चक्रतीर्थ या गोमती नदी में स्नान, फिर चक्रतीर्थ प्रांगण पर गणेश जी को लड्डू का प्रसाद अर्पण करते है इसके बाद चक्रतीर्थ प्रांगण स्थित श्री भूतनाथ, संकटमोचन हनुमान, श्रृंगी ऋषि, रामसीता, गोकर्णनाथ, सूर्यदेव, नारायण की परिक्रमा कर माँ ललिता देवी, पंच प्रयाग, जानकी कुंड का दर्शन कर डंके की धुन के बाद पहले पड़ाव कोरौना के प्रमुख दर्शन श्री कर्कराज, कुनेरा तीर्थ, कटह, रामकुंड, यज्ञ वाराह कूप द्वारिकाधीश तीर्थ, द्वारिकाधीश मन्दिर पर पूजा अर्चना करते है और कोरौना तीर्थ पर प्रथम पड़ाव करते है।
चौथी बार महंत नन्हकू दास बजायेंगे डंका
हर वर्ष रामादल परिक्रमा का शंखनाद पहला आश्रम महंत के द्वारा परंपरागत डंका की धुन के साथ होता है। वर्ष 2021 में महंत भरतदास ने डंका बजाकर यात्रा का प्रारम्भ किया था पर फरवरी 2022 में उनका देहांत हो जाने के चलते अब नए महन्त नन्हकू दास 2022, 2023, 2024 के बाद अब चौथी बार 2025 में इस परम्परा का निर्वहन करेंगे।