
अंकुर त्यागी
आज ही के दिन 21 फरवरी 1899 में भारत के प्रसिद्ध हिंदी कवि, निबंधकार और लेखक सूर्यकांत त्रिपाठी निराला का जन्म हुआ था ,उन्हें हिंदी साहित्य के महानतम रचनाकारों में गिना जाता है,15 अक्टूबर 1961 को सूर्यकांत निराला ने आखरी साँस ली, आपको बता दें कि सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला छायावादी युग के जयशंकर प्रसाद ,सुमित्रानंदन पंत और महादेवी वर्मा के साथ हिंदी साहित्य के प्रमुख लेखक और कवि थे और उन्हें “महाप्राण” के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि उनके जीवन में असहनीय समस्याएं होने के बाद भी उनका जीवन डिगा नहीं। ‘निराला ” का जन्म जन्म बंगाल की महिषादल रियासत (जिला मेदिनीपुर) में हुआ था। निराला के बचपन में उनका नाम सुर्जकुमार रखा गया, सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला के पिता का नाम पंडित रामसहाय था जो उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले के बैसवाडा के रहने वाले थे और महिषादल रियासत में एक सिपाही के रूप में तैनात थे। मूल रूप से उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले के गढ़ाकोला नामक गाँव के निवासी थे।
सूर्यकान्त का पारिवारिक जीवन
वह जब तीन वर्ष के थे तब उनकी माता का निधन हो गया था और जब बीस वर्ष के थे तब उनके पिता का भी देहांत हो गया था। उनका जीवन संघर्षो में कटा, साधनों के अभाव में उन्होंने अपने सयुंक्त परिवार का लालन पोषण किया। निराला के ऊपर दुखों का पहाड़ तब टूटा जब एक महामारी में उनकी पत्नी ,चाचा भाई और भाभी का देहांत हो गया। इन घटनाओं के बाद निराला के जीवन की जो स्थिति हुई वह उनके द्वारा लिखी गयी कविताओं में साफ साफ़ झलकती है
सूर्यकांत त्रिपाठी निराला की शिक्षा
उनकी प्रारंभिक शिक्षा महिषादल हाई स्कूल से हुई थी परंतु उन्हें वह पद्धति में रुचि नहीं लगी। फिर इनकी शिक्षा बंगाली माध्यम से शुरू हुई। हाई स्कूल की पढ़ाई पास करने के बाद उन्होंने घर पर रहकर ही संस्कृत ,अंग्रेजी साहित्य का अध्ययन किया था।जिसके बाद वह लखनऊ और फिर उसके बाद गढकोला उन्नाव आ गए थे। शुरुआत के समय से ही उन्हें रामचरितमानस बहुत अच्छा लगता था। उन्हें बहुत सारी भाषाओं का निपुण ज्ञान था: हिंदी ,बांग्ला ,अंग्रेजी, संस्कृत। श्री रामकृष्ण परमहंस, स्वामी विवेकानंद, रविंद्र नाथ टैगोर से वह अधिक रूप से प्रभावित थे। उन्हें पढ़ाई से ज्यादा मन खेलने ,घूमने, तेरने और कुश्ती लड़ने में लगता था।
निराला का कार्य क्षेत्र
सूर्यकांत त्रिपाठी निराला का कार्यक्षेत्र विविध और समृद्ध था। उन्होंने अपनी पहली नियुक्ति महिषादल राज्य में की थी, जहां वे 1918 से 1922 तक कार्यरत रहे। इसके बाद उन्होंने संपादन, अनुवाद कार्य और स्वतंत्र लेखन में संलग्न होना शुरू किया। 1922 से 1932 के बीच, वे कोलकाता में प्रकाशित होने वाले प्रसिद्ध मासिक पत्रिका “समन्वय” के संपादक रहे, और 1923 के अगस्त से “मतवाला” पत्रिका के संपादक मंडल में भी कार्य किया था।
इसके बाद, निराला 1934 में लखनऊ में स्थित गंगा पुस्तक माला कार्यालय से जुड़े, जहां उन्होंने मासिक पत्रिका “सुधा” का संपादन किया। उन्होंने 1934 से 1940 तक लखनऊ में कुछ समय बिताया और फिर 1942 से अपनी मृत्यु तक इलाहाबाद में रहकर अनुवाद कार्य और स्वतंत्र लेखन किया।
उनकी पहली कविता “जन्मभूमि प्रभा” 1920 के जून माह में प्रकाशित हुई थी। उनकी पहली कविता संग्रह “अनामिका” 1923 में प्रकाशित हुआ। इसके अतिरिक्त, उनका पहला निबंध “बंग भाषा का उच्चारण” 1920 के अक्टूबर में मासिक पत्रिका “सरस्वती” में प्रकाशित हुआ था।
निराला की रचनाएँ
1920 के आसपास उन्होंने अपना लेखन कार्य शुरू किया था। उनकी सबसे पहली रचना एक गीत जन्म भूमि पर लिखी गई थी। 1916 ई मैं उनके द्वारा लिखी गई ‘ जूही की कली ‘ बहुत ही लंबे समय तक का प्रसिद्ध रही थी और 1922 में प्रकाशित हुई थी।
सूर्यकांत त्रिपाठी के मुख्य काव्य संग्रह–
अनामिका (1923)
परिमल (1930)
गीतिका (1936)
अनामिका (द्वितीय)
तुलसीदास (1939)
निराला की कविता जब उनको पारिवारिक असहनीय हानि हुई।
धन्ये, मैं पिता निरर्थक का,
कुछ भी तेरे हित न कर सका!
जाना तो अर्थागमोपाय,
पर रहा सदा संकुचित-काय
लख कर अनर्थ आर्थिक पथ पर
हारता रहा मैं स्वार्थ-समर।’’
स्नेह-निर्झर बह गया है।
स्नेह-निर्झर बह गया है।
रेत ज्यों तन रह गया है।
आम की यह डाल जो सूखी दिखी,
कह रही है—“अब यहाँ पिक या शिखी
नहीं आते, पंक्ति मैं वह हूँ लिखी
नहीं जिसका अर्थ—
जीवन दह गया है।”
“दिए हैं मैंने जगत् को फूल-फल,
किया है अपनी प्रभा से चकित-चल;
पर अनश्वर था सकल पल्लवित पल—
ठाट जीवन का वही
जो ढह गया है।”