
लखनऊ : हिंदी कवि और वरिष्ठ लेखक उदय प्रताप सिंह ने विधान सभा में भारतीय भाषा उर्दू को निशाना बनाने पर सख्त टिप्पणी की है। उन्होंने सोशल मीडिया पर अपनी बात रखी है।
उदय प्रताप सिंह ने कहा कि संविधान के अनुसार भारत सरकार में कामकाज की मान्यता प्राप्त भाषाएं हिंदी और अंग्रेजी हैं, लेकिन हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाए जाने का सपना देखने वाले हम समाजवादी लोग अंग्रेजी की प्रमुखता को समाप्त करने चाहते थे। इसके लिए जाने कब से कठिन संघर्ष किया जा रहा है लेकिन कल विधानसभा में, वह भी उत्तर प्रदेश की विधानसभा में जहां हिंदी की प्रमुखता थी वहां भाषा के नाम पर अनावश्यक विवाद खड़ा कर दिया गया है।
उदय प्रताप सिंह ने कहा कि असलियत यह है कि सरकार अपने एजेंडा के अनुसार उत्तर प्रदेश राज्य को चार भागों में बांटना चाहती है, और इसी आधार पर विधानसभा में चार भाषाओं को यह बलात चर्चा छेड़कर feeler छेड़ा गया है। अन्यथा उत्तर प्रदेश की विधानसभा में ऐसा कौन विधायक है जो हिंदी नहीं समझता है या हिंदी से ज्यादा अंग्रेजी समझता है, फिर चार-चार भाषाओं के अनुवाद करने का खर्चा जनता के पैसे को बर्बाद करना नहीं है तो और क्या है? अगर सब विधायक हिंदी समझते हैं तो फिर किसकी सुविधा के लिए यह फेर बदल किया जा रहा है और इस जन धन का दुरुपयोग किया जा रहा है। अन्यथा अवधी, ब्रज, भोजपुरी, बुंदेलखंडी, यह सब हिंदी की बोलियां, जाने कब से, मानी जाती रही हैं । बोली और भाषा में अंतर होता है यह बात इन राजनीतिज्ञों को शायद पता नहीं है।
उदय प्रताप सिंह ने कहा कि एक मशहूर कहावत है कि “कोस कोस पर पानी बदले 20 कोस पर बानी ” वाणी और भाषा का भेद इस कहावत से स्पष्ट हो जाता है विधानसभा में जिनको भाषा कहा गया है वह हिंदी की ही प्रमुख बोलियां हैं। अगर इन बोलियां को हिंदी में से निकाल दिया जाएगा तो हिंदी पर भाषा कहलाने लायक कुछ नहीं बचेगा और तब लाखों शहीदों का हिंदी भाषा को राष्ट्रभाषा बनाने का सपना सपना ही रह जाएगा। यह तय है। लेकिन राजनीति में तत्काल लाभ के चक्कर में उत्तर प्रदेश की विधानसभा में सरकार द्वारा प्रकारान्तर से अंग्रेजी को मान्यता दी जा रही है, और हिंदी को कमज़ोर किया जा रहा है।
उदय प्रताप सिंह ने कहा कि एक बार गांधी जी ने कहा था कि “हिंदुस्तान से अंग्रेजों के जाने के बाद भी अगर अंग्रेजी की प्रमुखता नहीं गई तो यह देश आज़ादी के बाद भी आज़ाद नहीं होगा। गांधी जी ने यह भी कहा था की दुनिया से कह दो की गांधी अंग्रेजी बिल्कुल नहीं जानता” जबकि गांधी जी अंग्रेजी के बड़े विद्वान थे और उनकी आत्मकथा की अंग्रेजी भाषा की प्रशंसा अंग्रेजों तक ने की है। बीजेपी के लोग गांधी को केवल मुंह से,वह भी कभी-कभार सम्मान देते हैं, पर उनके विचारों की क़द्र नहीं करते, इसका सबसे बड़ा सबूत कल विधानसभा में भाषा के नाम पर बहस में दिखाई पड़ा।
उदय प्रताप सिंह ने आगे कहा कि उर्दू का विरोध करके भी, हिंदी को ही कमज़ोर और अंग्रेजी को मज़बूत किया जा रहा है। वास्तविकता यह है की बोलचाल में हिंदी और उर्दू एक ही भाषा खड़ी बोली के दो रूप हैं। अकबर इलाहाबादी ने एक शेर में कहा था कि,” हिंदी और उर्दू में फर्क है इतना वह ख्वाब देखते हैं हम देखते हैं सपना” यानी हिंदी और उर्दू में कोई अंतर नहीं है। कम से कम बोलने के स्तर पर हिंदी में मेज, कुर्सी, तकिया, कमीज, शिकायत जैसे अनेक शब्द हैं,जो उर्दू के जरिए हिंदी में आए हैं उनके हिंदी पर्याय ढूंढना अच्छे-अच्छो के लिए लोहे के चने चबाना है।
उत्तर प्रदेश के माननीय मुख्यमंत्री का यह कहना कि उर्दू पढ़कर क्या बच्चों को मौलवी बनाना चाहते हैं, यह वक्तव्य उनके अज्ञान को दर्शाता है उसका जीवन्त उदाहरण है कि उर्दू के विरोध में बोलते हुए उन्होंने अनेक उर्दू शब्दों का प्रयोग किया है उर्दू का उर्दू में विरोध करने को क्या कह जाये। उत्तर प्रदेश में सरकार के स्तर पर अभी तक हिंदी प्रमुख और उर्दू को दूसरी भाषा के रूप में मान्यता दी गई है। लेकिन उनका हिंदुत्व का एजेंडा उन्हें उर्दू की अहमियत स्वीकार नहीं करने देता, यह संकीर्णता और संविधान का उल्लंघन देश को कहां ले जाएं ईश्वर ही जानता होगा।










