अगर आप और कांग्रेस मिलकर लड़ते चुनाव, तो क्या अलग होते दिल्ली के नतीज़े…

दिल्ली विधानसभा चुनावों में आम आदमी पार्टी (आप) और कांग्रेस के अलग-अलग चुनाव लड़ने से जो परिणाम सामने आए, वह यह सवाल उठाते हैं कि अगर दोनों पार्टियां मिलकर चुनाव लड़ी होतीं, तो क्या होता? यहाँ हम इस सवाल का जवाब वोट पर्सेंटेज के आधार पर विस्तार से समझेंगे और देखेंगे कि इसका क्या असर पड़ा।

बीजेपी की बड़ी जीत: दिल्ली विधानसभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने बड़ी जीत हासिल की है। 70 सीटों वाली विधानसभा में बीजेपी ने 45.90% वोट शेयर के साथ लगभग आधी सीटों पर जीत दर्ज की है, जो दर्शाता है कि बीजेपी का प्रदर्शन बेहद मजबूत था।

आप का कमजोर प्रदर्शन: आम आदमी पार्टी ने अपेक्षाकृत खराब प्रदर्शन किया है। उसके पास 43.70% वोट शेयर है और 22 सीटों पर ही जीत हासिल हुई है। यह आंकड़ा दर्शाता है कि पार्टी को अपनी उम्मीद के अनुसार सीटें नहीं मिलीं, खासकर जब उसे 2015 और 2020 में जबरदस्त सफलता मिली थी।

कांग्रेस का खराब प्रदर्शन: कांग्रेस को दिल्ली विधानसभा चुनावों में केवल 6.38% वोट मिले हैं, और पार्टी किसी भी सीट पर जीत नहीं पाई। इसका मतलब यह है कि कांग्रेस का प्रदर्शन इस चुनाव में बेहद कमजोर रहा।

आप और कांग्रेस का गठबंधन: अगर दोनों पार्टियां, यानी आप और कांग्रेस, मिलकर चुनाव लड़तीं, तो वोट शेयर जोड़ने पर यह 50.08% तक पहुँचता। इस लिहाज से, यदि दोनों एकजुट होकर चुनाव लातीं तो बीजेपी को कड़ी टक्कर मिल सकती थी और शायद इस बार दिल्ली में सरकार बनाने की स्थिति में आ सकती थीं।

हरियाणा में हुआ नुकसान: दिल्ली में चुनावी परिणामों का रुझान भी हरियाणा विधानसभा चुनावों जैसा रहा। हरियाणा में भी आम आदमी पार्टी और कांग्रेस के अलग-अलग चुनाव लड़ने से दोनों पार्टियों का वोट बैंक बंटा और इसका फायदा बीजेपी को हुआ। अगर कांग्रेस और आप ने मिलकर चुनाव लड़ा होता, तो परिणाम बिल्कुल अलग हो सकते थे, जैसा कि दिल्ली में दिख रहा है।

आप और कांग्रेस की अनबन: हरियाणा और दिल्ली दोनों जगहों पर कांग्रेस और आप के बीच की तल्खी और अनबन ने चुनावी रणनीतियों को प्रभावित किया। दोनों पार्टियों ने एक-दूसरे के खिलाफ चुनाव लड़ा, जिसके परिणामस्वरूप उनके वोट बांट गए। इसका सीधा फायदा बीजेपी को हुआ, जो इन दोनों पार्टियों से अलग चुनाव लड़ने में सफल रही।

अगर दोनों पार्टियां गठबंधन करतीं: अगर आम आदमी पार्टी और कांग्रेस ने मिलकर चुनाव लड़ा होता, तो हरियाणा और दिल्ली दोनों ही राज्यों के चुनाव परिणाम बहुत अलग हो सकते थे। दोनों के मिलकर लड़ने से दोनों के वोट शेयर मिलकर एक मजबूत स्थिति उत्पन्न कर सकते थे, जो बीजेपी के लिए चुनौती साबित होती।

नुकसान और फायदे का विश्लेषण: अगर दोनों पार्टियां साथ मिलकर लड़तीं तो निश्चित रूप से बीजेपी के लिए स्थिति बहुत चुनौतीपूर्ण होती। दिल्ली में अगर कांग्रेस और आप का गठबंधन होता, तो शायद आप चौथी बार दिल्ली में सरकार बनाने की स्थिति में होती। इस तरह, दोनों पार्टियों के लिए अलग-अलग चुनाव लड़ना नुकसानदायक साबित हुआ।

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