दिल्ली में विधानसभा चुनाव की सरगर्मी के बीच विदेश मंत्री एस जयशंकर के बयान ने सियासी पारा और बढ़ा दिया है। एस जयशंकर ने दिल्ली प्रशासन औ नीतियों पर हमला बोलते हुए कहा कि दिल्ली में आम आदमी पार्टी की खराब नीतियों और बुनियादी असुविधाओं के चलते विदेश में मुझ शर्मिंदा होना पड़ता है।
एस जयशंकर का यह कहना कि दिल्ली में बुनियादी सुविधाओं की कमी है और पिछले 10 सालों में कोई वास्तविक विकास नहीं हुआ, यह संकेत देता है कि वे वर्तमान सरकार की नीतियों से असहमत हैं। जयशंकर का यह बयान राजनीति में एक बड़े मुद्दे की ओर इशारा करता है, जो आगामी दिल्ली विधानसभा चुनावों में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।
जयशंकर ने कहा, “जब भी मैं विदेश जाता हूं, तो दुनिया से एक बात छिपाता हूं। मुझे विदेश जाकर यह कहने में शर्म आती है कि राष्ट्रीय राजधानी के लोगों को घर नहीं मिलते, गैस सिलेंडर नहीं मिलते, जल जीवन मिशन के तहत पाइप से पानी नहीं मिलता और आयुष्मान भारत का लाभ नहीं मिलता।”
उन्होंने कहा, “यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि पिछले 10 वर्षों में दिल्ली को पीछे छोड़ दिया गया है। दिल्ली के निवासियों को पानी, बिजली, गैस, सिलेंडर, स्वास्थ्य उपचार का उनका अधिकार नहीं दिया गया है। अगर यहां की सरकार आपको अपना अधिकार नहीं देती है।” अधिकार तो 5 फरवरी को आपको भी लगता है कि इस सरकार को बदल देना चाहिए।”
उन्होंने कहा, “यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि पिछले 10 वर्षों में दिल्ली को पीछे छोड़ दिया गया है। दिल्ली के निवासियों को पानी, बिजली, गैस, सिलेंडर, स्वास्थ्य उपचार का उनका अधिकार नहीं दिया गया है। अगर यहां की सरकार आपको अपना अधिकार नहीं देती है।” अधिकार तो 5 फरवरी को आपको भी लगता है कि इस सरकार को बदल देना चाहिए।”
जयशंकर का यह बयान दिल्ली में बुनियादी सुविधाओं की कमी पर चिंता व्यक्त करता है और उनका कहना है कि उन्हें विदेश में यह बताने में शर्म महसूस होती है कि राष्ट्रीय राजधानी में नागरिकों को उनके अधिकार, जैसे घर, गैस सिलेंडर, स्वच्छ पानी और स्वास्थ्य सेवाएं नहीं मिल रही हैं। यह बयान साफ तौर पर दिल्ली सरकार की नीतियों और व्यवस्थाओं पर सवाल उठाता है और दिखाता है कि विदेशों में भारत की छवि को लेकर भी उनका दिलचस्पी है।
उनकी यह टिप्पणी न केवल दिल्ली सरकार की आलोचना करती है, बल्कि यह भी संकेत देती है कि दिल्ली की असल स्थिति में सुधार की आवश्यकता है। इस बयान से यह साफ होता है कि जयशंकर और उनकी पार्टी शायद इसे चुनावी मुद्दा बनाने की दिशा में काम करेंगे, खासकर जब लोग ऐसे बुनियादी मुद्दों से प्रभावित हैं।