पूर्व वित्तमंत्री पी. चिदंबरम ने बजट पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा है कि सरकार के पास नए विचारों का अभाव है और वह एक सीमित दायरे में काम कर रही है। पुराने ढर्रे पर चलते रहने की वजह से अर्थव्यवस्था की विकास दर 6 से 6.5 प्रतिशत से ज्यादा नहीं होगी। ऐसे में राष्ट्र विकसित कैसे बनेगा जिसके लिए 8 प्रतिशत विकास दर चाहिए।
कांग्रेस पार्टी की ओर से बजट पर प्रतिक्रिया के लिए आयोजित पत्रकार वार्ता में पी. चिदंबरम ने कहा कि वित्तमंत्री और प्रधानमंत्री ने मुख्य आर्थिक सलाहकार की सलाह पर ध्यान नहीं दिया। उन्होंने सरकार को रास्ते से हटने की सलाह दी थी लेकिन बजट में फिर कई योजनाएं जोड़ दी गई जिसमें कई सरकार के वश की बात नहीं है। उन्होंने कहा कि वित्त मंत्री तो 1991 और 2004 की तरह आर्थिक सुधार के लिए तैयार नहीं है।
उन्होंने कहा कि वित्तीय घाटे को 4.9 प्रतिशत से घटाकर 4.8 प्रतिशत करना कोई उपलब्धि नहीं है। इससे अर्थव्यवस्था को भारी कीमत चुकानी पड़ रही है। वर्तमान में अर्थव्यवस्था मंदी की ओर बढ़ रही है। लोग इसे महसूस कर रहे हैं। सरकार की योजनाएं बनाने और उन्हें लागू करने की क्षमता घट रही है। 2025-26 के पूंजीगत व्यय में 1.02 लाख करोड़ रुपए की वृद्धि की गई है लेकिन सरकार के इस क्षमता को पूरा करने में संदेह है।
पी. चिदंबरम ने कहा कि सरकार ने केवल मध्यम वर्ग के करदाताओं और बिहार के मतदाताओं को रिझाने की कोशिश की है। इन घोषणाओं का स्वागत 3.02 करोड़ करदाता और 7.65 करोड़ बिहार के मतदाता करेंगे बाकी भारत के लिए वित्त मंत्री के पास केवल सांत्वना भरे शब्द हैं।
चिदंबरम ने कहा कि 2024-25 वित्तीय प्रदर्शन राजस्व में 41,240 करोड़ की कमी और कुल खर्च में 1.4 लाख करोड़ रुपए की कटौती दिखाता है। इससे अर्थव्यवस्था के कई क्षेत्रों को नुकसान पहुंचा है। स्वास्थ्य, शिक्षा, सामाजिक कल्याण, कृषि, ग्रामीण विकास, शहरी विकास, पूर्वोत्तर विकास से जुड़े बजट में कटौती की गई है। कई योजनाओं पर बजट में काफी कटौती की गई है। इसमें पीएम अनुसूचित जाति अभ्योदय योजना प्रमुखता से शामिल है।
उन्होंने कहा कि ऐसा लगता है कि सरकार ने अपनी कई योजनाओं पर विश्वास खो दिया है। इसमें पोषण योजना, जल जीवन मिशन, राष्ट्रीय सामाजिक सहायता कार्यक्रम, प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना, फसल बीमा योजना, यूरिया सब्सिडी, पीएम गरीब कल्याण अन्न योजना शामिल है। सबसे ज्यादा अन्याय देश के रेलवे के साथ किया गया है। इससे जुड़ा आवंटन बढ़ाने की बजाय असल में घटाया गया है। रोजगार संबंधी योजनाएं केवल दिखावा हैं।