नई दिल्ली । 1991 में मुश्किल हालात में तत्कालीन वित्तमंत्री डॉ.मनमोहन सिंह को भारतीय अर्थव्यवस्था को उबारने की जिम्मेदारी सौंपी गई और उन्होंने अपने पहले ही बजट भाषण में ऐसा दांव चला, जिसने मौजूदा भारत के विकास की नींव रख दी और आज हमारी अर्थव्यवस्था दुनिया में तीसरे नंबर पर पहुंचने वाली है। मनमोहन को जिम्मेदारी उस वक्त दी गई थी जब देश के पास सिर्फ 6 अरब डॉलर का विदेशी मुद्रा भंडार, जिससे 2 हफ्ते का ही राशन-पानी खरीदा जा सकता है। चरम पर पहुंची महंगाई कंट्रोल से बाहर हो चुकी थी और भारतीय करेंसी डॉलर के मुकाबले 18 फीसदी टूट चुकी थी।
राजकोषीय घाटा जीडीपी का 8 फीसदी तो चालू खाते का घाटा 2.5 फीसदी पर था। मिडिल ईस्ट में युद्ध की वजह से कच्चे तेल की कीमतें भी आसमान पर पहुंच चुकी थीं। कुल मिलाकर कहा जाए तो अर्थव्यवस्था दिवालिया होने के करीब पहुंच गई थी। ये आंकड़े किसी गरीब या अफ्रीकी देश के नहीं, बल्कि भारतीय अर्थव्यवस्था के हैं। पढ़कर यकीन तो नहीं हुआ, लेकिन साल 1991 में देश की जीडीपी कही यही हालत थी। कर्जा भी काफी लद गया था और इकनॉमी को बाहर निकालने का कोई रास्ता दिख नहीं रहा था।
डॉ मनमोहन सिंह ने लगभग खत्म हो चुके आरबीआई के विदेशी मुद्रा भंडार को संजीवनी देने का भी फैसला किया। इसके लिए उन्होंने बैंक ऑफ इंग्लैंड से 60 करोड़ डॉलर का सोना मंगाया। इस बजट के बाद ही दुनियाभर की कंपनियों ने भारत का रुख किया और यहां निवेश करने के साथ प्रोडक्शन की भी शुरुआत की। इस उदारीकरण के बाद भारतीय अर्थव्यवस्था को नया अवसर मिला। यहां नौकरियों की बहार आ गई और लोगों के पास पैसा आने लगा। उनके फैसलों का असर आज की भारतीय अर्थव्यवस्था पर बखूबी दिख रहा है और यही मेक इन इंडिया जैसे अभियान को आगे बढ़ाने में मददगार साबित हुआ।
डॉ मनमोहन सिंह ने 24 जुलाई, 1991 को जब अपना पहला बजट भाषण पढ़ना शुरू किया तो भारत ही नहीं पूरी दुनिया की निगाहें उन पर ही टिकी थीं कि आखिर कैसे वे डूबती नैया को पार लगाएंगे। उन्होंने आर्थिक उदारीकरण को लेकर कई बड़े ऐलान किए और सबसे बड़ा सुधार तो लाइसेंस प्रक्रिया को सरल बनाने के लिए किया। उन्होंने देश के खजाने को मजबूत बनाने के लिए कॉरपोरेट टैक्स को 40 से बढ़ाकर 45 फीसदी कर दिया। देश के आयात बिल को कम करने और चालू खाते के घाटे को नीचे लाने के लिए आयात शुल्क 300 फीसदी से घटाकर महज 50 फीसदी कर दिया। घरेलू बाजार में चीजों को सस्ती कीमत पर उपलब्ध कराने के लिए सीमा शुल्क को 220 फीसदी 150 फीसदी कर दिया है। इसके साथ ही आयात के लिए लाइसेंस प्रक्रिया को सरल बनाने के साथ उन्होंने उदारीकरण, प्राइवेटाइजेशन और ग्लोबलाइजेशन पर फोकस किया, जिसके लिए प्राइवेट कंपनियों को आयात की आजादी देने के साथ विदेशी निवेश की सीमा भी बढ़ा दी।