भारत की 15वीं राष्ट्रपति, द्रौपदी मुर्मू, न केवल एक प्रमुख राजनेता हैं, बल्कि एक प्रेरणा स्रोत भी हैं। उन्होंने अपनी जीवन यात्रा में कई कठिनाइयों और चुनौतियों का सामना किया, फिर भी वह भारतीय राजनीति के शिखर तक पहुंचने में सफल रही हैं। उनके जीवन की यात्रा आदिवासी समुदाय की उम्मीदों और संघर्षों की प्रतीक है। द्रौपदी मुर्मू का जीवन भारतीय समाज के लिए एक मिसाल पेश करता है, विशेष रूप से उन महिलाओं और आदिवासियों के लिए जो समाज में अपनी पहचान बनाने के लिए कठिन संघर्ष कर रहे हैं।
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू का संसदीय संबोधन: सरकार की उपलब्धियों पर जोर
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने शुक्रवार को संसद में अपनी महत्वपूर्ण उपस्थिति दर्ज कराई और सरकार की कई प्रमुख योजनाओं और उद्देश्यों का जिक्र किया। उनके भाषण में सरकार की पहल और योजनाओं को महत्व दिया गया, विशेषकर मध्यम वर्गीय परिवारों को घर खरीदने में सहायता प्रदान करने की सरकार की प्रतिबद्धता को उजागर किया गया। उन्होंने यह भी उल्लेख किया कि वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण 1 फरवरी 2025 को केंद्रीय बजट प्रस्तुत करेंगी, जो देश की आर्थिक स्थिति और भविष्य की योजनाओं के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान करेगा।
राष्ट्रपति मुर्मू ने अपनी भाषण की शुरुआत संविधान को लेकर अपनी भावनाओं को व्यक्त करते हुए की। उन्होंने कहा, “दो महीने पहले, हमने संविधान को अपनाने के 75 वर्ष पूरे किए और हाल ही में, हमने इस यात्रा के 75 साल का सफर भी पूरा किया। मैं सभी भारतीयों की ओर से बाबासाहेब अंबेडकर और संविधान समिति के सभी सदस्यों को श्रद्धांजलि अर्पित करती हूं।” यह उनका संविधान के प्रति सम्मान और भारतीय लोकतंत्र के प्रति उनकी प्रतिबद्धता को दर्शाता है।
द्रौपदी मुर्मू की शैक्षिक यात्रा: आदिवासी समुदाय से एक प्रेरणा
द्रौपदी मुर्मू का जन्म ओडिशा के संथाल जनजाति में हुआ था। उनका प्रारंभिक जीवन बहुत साधारण था, लेकिन उन्होंने शिक्षा के माध्यम से अपने जीवन को बदलने का निश्चय किया। उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा ओडिशा के उपरबेड़ा गांव के एक छोटे से स्कूल में प्राप्त की। इसके बाद उन्होंने रमा देवी महिला कॉलेज (जो अब एक विश्वविद्यालय है) से स्नातक की डिग्री प्राप्त की।
मुर्मू का शिक्षा के प्रति उत्साह उनके जीवन में एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुआ। शिक्षा पूरी करने के बाद, उन्होंने एक प्राथमिक विद्यालय में शिक्षिका के रूप में कार्य किया। इस दौरान उन्हें बच्चों के साथ काम करने का अनुभव मिला और उनके जीवन के उद्देश्य को पहचानने का अवसर मिला। इसके बाद, उन्होंने श्री अरबिंदो इंटीग्रल एजुकेशन एंड रिसर्च इंस्टीट्यूट, रायरंगपुर में सहायक प्रोफेसर के रूप में कार्य किया। इसके अलावा, उन्होंने ओडिशा सरकार के सिंचाई विभाग में जूनियर असिस्टेंट के रूप में भी कार्य किया।
उनका यह कार्य अनुभव न केवल उनके व्यक्तिगत विकास में सहायक रहा, बल्कि यह उनके नेतृत्व कौशल को भी बढ़ाने में सहायक था।
राजनीतिक सफर: एक नई पहचान की ओर
द्रौपदी मुर्मू का राजनीतिक सफर भारतीय जनता पार्टी (भा.ज.पा.) से जुड़ने के बाद शुरू हुआ। 1997 में उन्होंने भाजपा से जुड़ने के बाद रायरंगपुर नगरपालिका की सदस्य के रूप में अपना राजनीतिक करियर शुरू किया। इसके बाद, उन्होंने ओडिशा राज्य में अपने राजनीतिक कद को मजबूती से स्थापित किया। उनके नेतृत्व में ओडिशा के आदिवासी क्षेत्रों में कई योजनाओं और पहलुओं की शुरुआत हुई, जिनका लाभ सीधे स्थानीय लोगों को हुआ।
उनकी मेहनत और समर्पण को देखते हुए, 2015 में उन्हें झारखंड का राज्यपाल नियुक्त किया गया। वह झारखंड की आदिवासी बहुल क्षेत्र की राज्यपाल बनने वाली पहली महिला थीं। उनकी इस उपलब्धि ने न केवल उनके राजनीतिक करियर को एक नया आयाम दिया, बल्कि आदिवासी समुदाय की महिलाओं को भी एक नई दिशा दिखाई। राज्यपाल के रूप में उन्होंने आदिवासी संस्कृति, परंपरा, और समुदायों की भलाई के लिए कई योजनाओं की शुरुआत की, जो आज भी प्रभावी हैं।
राष्ट्रपति पद की ओर सफर
द्रौपदी मुर्मू की यह यात्रा केवल एक राजनीतिक यात्रा नहीं थी, बल्कि एक सांस्कृतिक और सामाजिक यात्रा भी थी। उन्होंने अपने कार्यकाल में हमेशा अपने समुदाय और उनके अधिकारों की रक्षा की। उनकी आदिवासी समुदाय से जुड़ी जड़ें उनके कार्यों और विचारों में स्पष्ट रूप से दिखाई देती थीं। उनके द्वारा किए गए कार्यों के कारण उन्हें 2022 में भारतीय राजनीति के सबसे महत्वपूर्ण पद, राष्ट्रपति पद के लिए उम्मीदवार बनाया गया।
द्रौपदी मुर्मू का राष्ट्रपति बनना न केवल भारतीय राजनीति के लिए एक ऐतिहासिक घटना थी, बल्कि यह उन लाखों आदिवासी महिलाओं के लिए एक प्रेरणा बन गया, जो समाज में अपने अधिकारों और पहचान के लिए संघर्ष कर रही थीं। राष्ट्रपति बनने के बाद, उन्होंने भारतीय समाज और संस्कृति की शक्ति और विविधता को सम्मानित किया और हर वर्ग के लोगों के लिए समान अवसरों की बात की।
द्रौपदी मुर्मू: एक आदर्श नेतृत्व
राष्ट्रपति के रूप में, द्रौपदी मुर्मू ने भारत के संवैधानिक मूल्यों को मजबूत किया और भारतीय जनता के लिए शांति, समृद्धि और विकास की दिशा में कई पहल की। उन्होंने भारतीय लोकतंत्र और उसके संविधान के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को हमेशा स्पष्ट रूप से व्यक्त किया।
उनका जीवन, संघर्ष और सफलता न केवल महिलाओं के लिए, बल्कि पूरे समाज के लिए एक प्रेरणा है। उनके नेतृत्व में, भारत के आदिवासी समुदाय को उनकी पहचान और अधिकार मिले हैं, और उनकी आवाज़ अब भारतीय राजनीति और समाज में गूंज रही है।