साहस और देशभक्ति की मिसाल: सरस्वती राजामणि की गुमनाम क्रांतिकारी यात्रा

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में अक्सर पुरुष नायकों-महानायकों का ज़िक्र है लेकिन इन पन्नों से उन महान महिला क्रांतिकारियों का नाम गायब है, जिन्होंने उतनी बहादुरी और जज्बे के साथ अंग्रेजों से लोहा लिया। ऐसे ही नामों की फेहरिस्त में शामिल हैं- सरस्वती राजामणि। आजाद हिंद फौज की जासूस और बेहद कम उम्र की गुमनाम क्रांतिकारी थीं जिन्होंने नेताजी सुभाष चंद्र बोस को बहुत प्रभावित किया था।

सरस्वती का जन्म 1927 में बर्मा में हुआ। उनके पिता भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के समर्थक थे और अंग्रेजों से बचने के लिए उन्होंने बर्मा में शरण ली थी। इस तरह देशभक्ति की भावना राजामणि को विरासत में मिली। इस महिला क्रांतिकारी से जुड़ी एक कहानी यह है कि एक बार महात्मा गांधी सरस्वती राजामणि के घर गये और तब राजमणि बंदूक से निशानेबाजी का अभ्यास कर रही थीं। गांधीजी ने उनसे पूछा कि एक बच्चे को बंदूक चलाना सीखने की क्या जरूरत है। इस पर राजमणि ने कहा था, ‘अंग्रेज़ों को मारने के लिये और किसलिये?’ गांधीजी अहिंसावादी थे और राजमणि को अहिंसा का मार्ग समझाने लगे लेकिन राजमणि बचपन से यही मानती थीं कि हिंसा का मार्ग ज़्यादा प्रभावशाली होता है।

वे जब 16 साल की थीं, तब नेताजी सुभाष चंद्र बोस के भाषण से इतना प्रभावित हुईं कि अपने सारे गहने आजाद हिन्द फौज को दान कर दिए। नेताजी को इस बात का विश्वास नहीं हुआ और वो सरस्वती राजामणि से मिलने पहुंच गए। राजामणि का हौसला और जज्बा देखकर नेताजी ने उन्हें फौज का हिस्सा बना लिया। राजामणि ने अपनी दोस्त दुर्गा के साथ मिलकर ब्रिटिश कैंप की जासूसी की और कई महत्वपूर्ण जानकारियां आजाद हिन्द फौज को दीं। सन 1957 में सरस्वती राजामणि भारत लौटीं और त्रिची में बस गईं। राजमणि का जीवन यहां आसान नहीं था और उन्हें भारत सरकार से पेंशन पाने के लिये काफ़ी मशक्कत करनी पड़ी। सरस्वती राजामणि को चेन्नई जाकर बसना पड़ा। बर्मा में पैतृक संपत्ति बेचकर जो पैसे मिले थे, उससे अपना गुज़ारा चलाने लगीं।

सन 1971 में आज़ादी के सरस्वती राजामणि और फ़ौज के बाक़ी सिपाहियों को पेंशन मिलने लगी, लेकिन राजमणि का जीवन फिर भी मुश्किल भरा था। 2005 तक राजमणि एक कमरे के मकान में रहती थीं, 2005 में तमिलनाडु सरकार ने उन्हें चेन्नई में एक घर दिया। 13 जनवरी, 2018 को इस वीरांगना ने आख़िरी सांसें लीं।

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