प्रयागराज: इलाहाबाद हाई कोर्ट में 17 साल 8 महीने की नाबालिग लड़की ने बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका को निरर्थक करार दिया और कहा उसे अपने पिता के घर में खतरा है। उसकी सुरक्षा के लिए उसे नारी निकेतन भेज दिया जाए। इस पर कोर्ट ने बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका खारिज कर दी और जिला प्रोबेशन अधिकारी प्रयागराज को लड़की को बालिग होने तक नारी निकेतन में रखने का निर्देश दिया है। कोर्ट ने अपर शासकीय अधिवक्ता को इस कार्य में निबंधक शिष्टाचार का सहयोग लेने को कहा है।
यह आदेश न्यायमूर्ति सौरभ श्रीवास्तव ने सतीष व अन्य की तरफ से दाखिल बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पर दिया है। याचिका में लड़की को विपक्षियों की अवैध निरुद्धि से मुक्त कराने की मांग की गई थी। कोर्ट ने लड़की को पेश करने का आदेश दिया था और उसने हाजिर होकर याचिका के आरोपों को सिरे से नकार दिया और कहा कि वह अपनी मर्जी से गई है। विपक्षियों का उससे कोई सरोकार नहीं है।
उसने कहा कि पहले देहरादून अपनी सहेली के पास जॉब के लिए गयी। पिता ने अनुज व उसके परिवार के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराया। लड़की ने पिता द्वारा लिखाई गई रिपोर्ट को फर्जी बताया तो हाई कोर्ट ने अनुज की बेल ग्रांट कर दिया। लड़की के पिता द्वारा फिर बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दाखिल किया गया और आरोप फिर अनुज और उसके पिता-माता, दामाद पर लगाया और कहा कि इन लोगों ने हमारी लड़की को बंधक बनाया है और कहीं गायब कर दिया है।
कोर्ट के आदेश पर लड़की खुद हरिद्वार से आकर उपस्थित हुई। बयान दिया कि सारी कहानी झूठी है। मैं 17 साल 8 महीने से ज्यादा उम्र की हूं। मुझे किसी ने भगाया नहीं है, मैं खुद बच्चों की कोचिंग लेती हूं। मैं हरिद्वार से खुद आई हूं। जिनके ऊपर मुझे लापता करने का आरोप है उनसे मेरा कोई संबंंध नहीं। अगर मुझे पिता की कस्टडी में दिया गया तो मेरी जान का खतरा है। इसलिए हम पिता के साथ नहीं जा सकते। हमें सुरक्षा और संरक्षण चाहिए। आप हमें नारी निकेतन भेज दीजिए। कोर्ट ने परिस्थितियों पर विचारोपरांत लड़की को नारी निकेतन भेज दिया। कोर्ट ने हैवियस कार्पस याचिका खारिज कर दिया।