-महायुति की डबल इंजन सरकार ने प्याज और सोयाबीन से जुड़े मुद्दों पर दिया ध्यान
नई दिल्ली । जून में हुए लोकसभा चुनावों में महाराष्ट्र में बीजेपी का प्रदर्शन निराशाजनक रहा था। तब किसानों की नाराजगी प्रमुख थी। खासकर पंजाब में विरोध प्रदर्शनों के चलते धारणा बदलना एनडीए सरकार के एजेंडे का हिस्सा था। पिछले पांच महीनों में बीजेपी के नेतृत्व वाली केंद्र और महायुति के डबल इंजन की सरकार ने इन चिंताओं को दूर करने की कोशिश की। खासकर प्याज और सोयाबीन से जुड़े मुद्दों पर ध्यान दिया। इस बार गर्मियों में इन मुद्दों पर किसानों में काफी रोष देखने को मिला था।
आम चुनावों से पहले केंद्र ने उपभोक्ताओं को राहत देने के लिए प्याज के निर्यात पर प्रतिबंध हटाने के लिए मई तक इंतजार किया, लेकिन सितंबर की शुरुआत में केंद्र ने न्यूनतम निर्यात मूल्य को हटाने का फैसला किया। साथ ही उसने प्याज का बड़ा भंडार बनाया। इस बार सीधे किसानों से 4.7 लाख टन प्याज खरीदी जबकि पिछले साल 3 लाख टन प्याज खरीदी थी। इस बार प्याज की खरीद 28 रुपए प्रति किलो की औसत कीमत पर की गई जो पिछले बार के 17 रुपए से 64 फीसदी ज्यादा है। इसी तरह, केंद्र में सत्ता में आने के कुछ दिनों के भीतर मोदी सरकार ने सोयाबीन के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) में 6 फीसदी की वृद्धि की घोषणा की।
मध्य प्रदेश के बाद महाराष्ट्र देश में सोयाबीन का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है।
सोयाबीन की एमएसपी 4,892 रुपए प्रति क्विंटल है। यह बढ़ोतरी ऐसे समय की गई जबकि ग्लोबल मार्केट में ज्यादा आपूर्ति के कारण बाजार की कीमतें एक दशक में सबसे निचले स्तर पर थीं। इसके अलावा कृषि मंत्रालय ने सरकारी एजेंसियों के जरिए महाराष्ट्र से उपज का एक चौथाई हिस्सा खरीदने का फैसला किया। साथ ही तुअर दाल पर भी ध्यान दिया गया। हालांकि तुअर के लिए बाजार मूल्य एमएसपी से ज्यादा है, लेकिन इस कदम से किसानों को राहत मिली है। इससे गन्ना उत्पादकों के बीच भी एक सकारात्मक संदेश गया है।