नई दिल्ली । प्रोफेसर डॉक्टर एनआर माधव मेनन मेमोरियल अवॉर्ड स्वीकार करने पहुंचे जस्टिस जोसेफ ने कहा कि आंख पर पट्टी का मतलब यह दिखाना है कि इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि अदालत के सामने बहस कौन कर रहा है। उन्होंने कहा कि न्याय निष्पक्षता के साथ होता है। बार एंड बेंच की रिपोर्ट के अनुसार, उन्होंने कहा, इस बात से फर्क नहीं पड़ता कि आपके सामने कौन आ रहा है। इस बात से फर्क नहीं पड़ता कि सामने खड़ा व्यक्ति कौन है। यही वजह है कि न्याय की देवी की आंखों पर पट्टी होती है…। हम सभी के कुछ कर्तव्य हैं। इसलिए किसी व्यक्ति की खुद की पसंद की व्यवस्थाओं के स्थान पर संस्थागत व्यवस्थाएं और प्रथाएं होनी चाहिए।
बता दें कि सुप्रीम कोर्ट में न्याय की देवी की मूर्ति में बदलाव की चर्चाएं जारी हैं। दरअसल, हाल ही में अदालत ने न्याय की देवी की नई मूर्ति स्थापित हुई है, जिनकी आंखों पर पट्टी नहीं बंधी है। अब शीर्ष न्यायालय के पूर्व जस्टिस कुरियन जोसेफ ने इस पट्टी की वजह पर खुलकर बात की है। उन्होंने तलवार की जगह संविधान की प्रति लगाए जाने के फैसले का भी बचाव किया है। तलवार के स्थान पर संविधान लाए जाने पर उन्होंने कहा कि तलवार के साथ-साथ संविधान को ढाल की तरह देखा जाना चाहिए। उन्होंने कहा, मेरा मानना है कि संविधान अच्छा फैसला है, लेकिन संविधान को तलवार के साथ कवच के तौर पर दिखाया जाना चाहिए। एक अधिकारों की रक्षा के लिए कवच और तलवार उन लोगों के लिए जो अच्छा करने वालों के साथ गलत करते हैं।
अदालत में नई प्रतिमा
अक्टूबर में सुप्रीम कोर्ट में न्याय की देवी की नई प्रतिमा लगाई गई, जिसके एक हाथ में तराजू और दूसरे हाथ में संविधान की पुस्तक है। न्यायाधीशों के पुस्तकालय में लगाई गयी छह फुट ऊंची इस प्रतिमा के हाथ में तलवार नहीं है। सफेद पारंपरिक पोशाक पहने ‘न्याय की देवी’ की आंखों पर पट्टी और हाथ में तलवार नहीं है हालांकि सिर पर मुकुट सजाया गया है।