पुराना हुआ दीवार पर लेखन, अब वॉल पर पोस्ट करके होता है प्रचार
डिजिटल मीडिया ने अखबार और टीवी को पीछे छोड़ दिया
जौनपुर। पहले के दिनों में चुनाव प्रचार में इक्के या रिक्शे से बंधे लाउड स्पीकर से पार्टी और प्रत्याशी के समर्थन में बैठकों से लेकर रैलियों की जानकारी देने के अलावा वादों और दावों की घोषणा भी की जाती थी। सीमित यातायात साधनों के कारण पोस्टकार्ड पर हाथ से लिखी चिट्ठी के जरिए भी उम्मीदवार अपनी बात को मतदाताओं तक पहुंचाते थे। दीवार लेखन का चलन भी अब पुराना हो गया है लेकिन डिजिटल क्रांति के इस दौर में अब प्रत्याशी मतदाता के हाथों में पहुंच चुका है,जो महज अंगूठे की स्क्रोलिंग तक मे ही अपना प्रभाव दिखाने की जद्दोजहद में रहता है। बीतें दशकों में सम्पन्न चुनावों में प्रचार माध्यम पर गौर करें तो सबसे अधिक प्रभावशाली बुध्धु बक्शा अर्थात टेलीविजन माध्यम रहा है, जिसने चलित चित्रों के माध्यम से लोगों को प्रभावित करने का काम किया। समय के साथ ही लोकसभा चुनाव के प्रचार का तरीका भी बदलता जा रहा है। अब प्रत्यक्ष चुनाव प्रचार और जनसंपर्क के अलावा इस संसदीय चुनाव में सोशल मीडिया बड़ी भूमिका निभा रहा है। पर्दे के पीछे का यह चुनाव प्रचार काफी महत्वपूर्ण हो गया है। सही मायने में चुनाव प्रचार में सोशल मीडिया की भूमिका काफी व्यापक हो गई है।
लगभग सभी राजनीतिक दलों और स्वतंत्र उम्मीदवारों ने चुनाव में जीत हासिल करने और मतदाताओं को रिझाने के लिए मीडिया वार रूम बना रखा है। विपक्षियों की कमजोरियों को उजागर करने, चुनाव प्रचार को धार देने और अपने उम्मीदवार की छवि निखारने में सोशल मीडिया महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। उम्मीदवारों के चुनावी दौरे, सभा, बड़े नेताओं के भाषण और स्थानीय स्तर पर मिली जानकारी को सोशल मीडिया पर पोस्ट कर दिया जाता है। इसमें भी आचार संहिता का खास खयाल रखा जाता है।
सोशल मीडिया पोस्ट नजर रखने के लिए लगभग सभी बड़े राजनीतिक दल कानून के जानकारों की सलाह लेते हैं। पिछले कई चुनावों पर पैनी नजर रखने वाले जानकार कहते हैं कि सोशल मीडिया कई तरह की जानकारियों का घर बन गया है। उनका कहना है कि पहले अखबार, टीवी, रेडियो थे, पर आज सोशल मीडिया इन सबसे काफी आगे निकल गया है। सही मायने में आजकल चुनाव सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर लड़े जाते हैं। फेसबुक, ट्विटर, वाटसएप, इंस्टाग्राम, यू ट्यूब, एक्स जैसे कई मीडिया प्लेटफॉर्म का उपयोग इस चुनाव में बेधड़क किया जा रहा है। चुनावों में सोशल मीडिया की भूमिका लगातार बढ़ती जा रही है। सोशल मीडिया पर प्रोमोट करने के लिए उम्मीदवार और राजनीतिक दल जमकर पैसे खर्च कर रहे हैं। कई राजनीतिक दलों ने तो सोशल मीडिया के लिए एजेंसियों को भी हायर कर रखा है, जो चुनाव प्रचार की कमान संभाले हुए हैं। सोशल मीडिया के जानकार कहते हैं कि इस बार प्रचंड गर्मी में बैनर-पोस्टर लगे चुनाव प्रचार वाहनों के काफिले नजर नहीं आ रहे हैं। छोटे नेेताओं की चुनावी सभाओं में भी अपेक्षाकृत कम भीड़ उमड़ रही है। इस बार चुनावी महासमर पूरी तरह वर्चुअल प्लेटफॉर्म पर निर्भर है। चुनाव आयोग द्वारा चुनाव प्रचार का समय निर्धारण और कई अन्य तरह की पाबंदियों के कारण राजनीतिक दल सोशल मीडिया पर अपनी ताकत झोंक रहे हैं। पार्टी के नेता और समर्थक फेसबुक, ट्विटर, वाटसएप, इंस्टाग्राम, यू ट्यूब, एक्स जैसे कई मीडिया प्लेटफॉर्म पर काफी सक्रिय नजर आ रहे हैं। सभी अपने-अपने तरीके से मतदाताओं को प्रभावित करने और उन्हें रिझाने के लिए कई तरह के पोस्ट कर रहे हैं।
टविटर, फेसबुक, इंस्टाग्राम समेत सभी सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर अधिकतर युवा ही हैं। इनकी चुनाव में अहम भूमिका मानी जाती है। अब युवा वोटर ही किसी भी पार्टी व उम्मीदवार की परिवार के बीच छवि तैयार करते हैं। ऐसे में युवाओं को अपनी ओर आकर्षित करने वाला कंटेंट ज्यादा मायने रखता है। कंटेंट ऐसा होना चाहिए जो युवाओं को अपनी ओर आकर्षित करे। यह तभी संभव है जब औरों से अलग और क्रिएटिव पोस्ट करें। सोशल मीडिया पर निगेटिव और पाजिटिव दोनों ही कंटेंट चलते हैं।सोशल मीडिया फ्रेंडली और युवाओं के मन की बात को समझने वाले कंटेंट राइटर राजनीतिक दलों की पहली पसंद हैं। सोशल मीडिया पर अच्छा लिखने वाले लोगों से संपर्क किया जा रहा है। सोशल मीडया हैंडलर और बेहतरीन कंटेंट राइटर को उम्मीदवारों की ओर से हायर किया जा रहा है।