रुड़की: कार्बन फुटप्रिंट और ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन पर की चर्चा


रुड़की। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) रुड़की में जल एवं नवीकरणीय ऊर्जा विभाग, भारत सरकार के विज्ञान एवं इंजीनियरिंग अनुसंधान बोर्ड (एसईआरबी) के सहयोग से सतह जल ऑनसाइट स्वच्छता प्रणाली एवं जल उपचार प्रणाली से कार्बन फुटप्रिंट व जीएचजी उत्सर्जन का आकलन पर कार्यशाला का आयोजन किया गया। वक्ताओं व क्षेत्र के विशेषज्ञों की उपस्थिति में आयोजित इस कार्यक्रम का उद्देश्य ग्रीनहाउस गैस (जीएचजी) उत्सर्जन अनुमान और शमन में सर्वोत्तम प्रथाओं के महत्वपूर्ण पहलुओं पर प्रकाश डालना रहा। प्रतिभागियों को गहन चर्चाओं, तकनीकी सत्रों और आकर्षक बातचीत की जानकारी रही, जिसमें जल क्षेत्रों और ऑनसाइट स्वच्छता में स्थायी प्रथाओं की आवश्यकता पर जोर दिया गया।

आईआईटी रुड़की के निदेशक प्रोफेसर केके पंत ने स्वच्छ और हरित समाधान अपनाने की अनिवार्यता पर बल देते हुए कहा कि टिकाऊ भविष्य का मार्ग जल, स्वच्छता व (वॉश) के लिए स्वच्छ समाधानों को नया करने और अपनाने की हमारी क्षमता में निहित है। उन्नत तकनीकों के माध्यम से कार्बन उत्सर्जन को मापना और जीएचजी उत्सर्जन को कम करना सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) को प्राप्त करने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम है। कार्यशाला में पेरिस समझौते, जीएचजी उत्सर्जन, जलवायु परिवर्तन पर अंतर सरकारी पैनल (आईपीसीसी) की अंतर्दृष्टि से लेकर जल निकायों, अपशिष्ट जल उपचार सुविधाओं और ऑन-साइट स्वच्छता से जीएचजी उत्सर्जन के लिए विभिन्न माप तकनीकों और उपकरणों जैसे विषयों पर व्यापक चर्चा हुई।

उद्योग और निगरानी क्षेत्रों के विशेषज्ञों ने कार्बन क्रेडिटिंग तंत्र और संबंधित विपणन पहलुओं पर बहुमूल्य अंतर्दृष्टि प्रदान की।कार्यशाला सलाहकार समिति के अध्यक्ष प्रोफेसर अरुण कुमार ने कहा कि आज की हमारी चर्चाओं ने जलवायु परिवर्तन से निपटने में वैश्विक सहयोग और सामूहिक प्रयासों के महत्व पर प्रकाश डाला। पेरिस समझौता और आईपीसीसी की अंतर्दृष्टि मार्गदर्शक ढांचे के रूप में काम करती है, लेकिन इन्हें कार्रवाई योग्य रणनीतियों में बदलना हमारी साझा जिम्मेदारी है।

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