सीतापुर। रासायनिक खादों और कीटनाशकों के अधिकाधिक उपयोग से धरती माता का स्वास्थ्य लगातार बिगड़ रहा है। वह बंजर होती जा रही हैं। हमारी फसलों के लिए उपयोगी जीवाणु मिट्टी से नष्ट होते जा रहे हैं। यदि जल्दी ही हम सचेत नहीं हुए तो आने वाली हमारी पीढ़ियों को तमाम संकटों से जूझना पड़ेगा। हमारे पास न तो रोग मुक्त अनाज बचेगा और न ही पीने के लिए शुद्ध पानी। यह बात सेकसरिया चीनी मिल बिसवां के वैज्ञानिक व प्रमुख सलाहकार डॉ रामकुशल सिंह ने सकरन के मडोर गांव में जैविक खेती करने वाले गन्ना किसान महेश मिश्रा के गन्ने के खेत पर आयोजित गन्ना किसानों की गोष्ठी में कही।
डॉ रामकुशल सिंह ने कहा कि धरती माता को बंजर होने से केवल गौ माता के आशीर्वाद से ही बचाया जा सकता है।
गाय के गोबर और मूत्र से बने जीवामृत/घनजीवामृत के उपयोग से धरती माता स्वस्थ रहेंगी। जिससे हमें रोग मुक्त अनाज, गुड़, सब्जियां और दालें मिलेगी। गाय के गोबर और मूत्र के उपयोग से बनने वाले जैव कीटनाशक/बायोपेस्टिसाइड के उपयोग से फसलों को हानि पहुंचाने वाले कीट/पतंगे नष्ट हो जाते हैं। लेकिन मिट्टी में फसलों के लिए उपयोगी जीवाणुओं की संख्या और बढ़ जाती है। जिससे हमें रोग मुक्त फसलें तो मिलती ही हैं,वही खेत की मिट्टी का स्वास्थ्य भी अच्छा बना रहता है।
उन्होंने बताया कि जैविक पेस्टिसाइड बनाने के लिए ताजा गाय का गोबर,चार दिनों से अधिक पुराना गोमूत्र, 10 पर्णी पत्तियों का चूरा/पेस्ट जिनमें नीम, तंबाकू, मदार, पपीता, कनेर, गेंदा/बेहया, धतूरा, गन्ने का रस/गुड, हरा मिर्चा, लहसुन, अदरक, हल्दी, खली चूना इन सब का पेस्ट बनाकर एक एक कर प्लास्टिक के ड्रम में भर देना है। इस घोल को अच्छी तरह मिलाना है। एक महीने की नियमित देखभाल से यह जैव कीटनाशक तैयार हो जाएगा।