बांदा : बरसों पहले भूरागढ़ दुर्ग में लिखी गई थी किलेदार की पुत्री और नट की प्रेमगाथा

दैनिक भास्कर न्यूज

बांदा। प्रेमिका को पाने के लिए पतले सूत की रस्सी पर चलकर नदी पार करते समय जान गंवा बैठे युवा नटबली की याद में एक बार फिर आशिकों का मेला तैयार है। शनिवार को केन नदी और भूरागढ़ दुर्ग के बीच स्थित युवा नटबली और उसकी प्रेमिका की याद में बने मंदिरों पर मेला लगेगा। प्रेमी-प्रेमिका इस मेले का बेसब्री से इंतजार करते हैं। शहर की सीमा पर केन नदी और भूरागढ़ दुर्ग के बीच दो प्राचीन मंदिर प्रेम में सबकुछ न्योछावर कर देने वाले नटबली की याद दिलाते हैं। किवदंती है कि महोबा जनपद के सुगिरा का रहने वाला नोने अर्जुन सिंह भूरागढ़ दुर्ग का किलेदार था। यहां से कुछ किलोमीटर दूर सरबई (मध्य प्रदेश) गांव है।

वहां नट जाति के लोग आबाद थे। अक्सर करतब दिखाने और कामकाज के लिए नट भूरागढ़ आते थे। किले में काम करने वाले एक युवा नट से किलेदार की पुत्री को प्रेम हो गया। नोने अर्जुन सिंह को इसका पता चला तो पहले तो नाराज हुआ फिर बाद में उसने प्रेमी युवा नट से यह शर्त रखी कि सूत की रस्सी पर चलकर नदी पार करके किले में आए। अगर ऐसा कर लेगा तो वह अपनी पुत्री से उसकी शादी कर देगा। नट ने शर्त मान ली। खास मकर संक्रांति के दिन सन 1850 ईस्वी में नट ने प्रेमिका के पिता की शर्त पूरी क रने के लिए नदी के इस पार से लेकर किले तक रस्सी बांध दी। इस पर चलता हुआ वह किले की ओर बढ़ने लगा।

नटबली मंदिर में जुटेगी युवाओं की भीड़, खूब चढ़ेगा मीठी रेवड़ी का प्रसाद

उसका हौसला बढ़ाने के लिए नट बिरादरी के लोग रस्सी के नीचे चलकर बाजे-गाजे बजा रहे थे। नट ने रस्सी पर चलते हुए नदी पार कर ली और दुर्ग के करीब जा पहुंचा। यह तमाशा नोने अर्जुन सिंह किले से देख रहा था। उसकी पुत्री भी अपने प्रेमी के साहस का नजारा देख रही थी। युवा नट दुर्ग में पहुंचने को ही था कि तभी किलेदार नोने अर्जुन सिंह ने रांपी से रस्सी काट दी। नट नीचे चट्टानों पर आ गिरा और उसकी वहीं मौत हो गई।

प्रेमी की मौत का सदमा किलेदार की पुत्री को बर्दाश्त न हुआ और उसने भी दुर्ग से छलांग लगाकर जान दे दी। इन दोनों प्रेमी-प्रेमिकाओं की याद में घटनास्थल पर दो मंदिर बनाए गए। यह आज भी बरकरार हैं। नट बिरादरी के लोग इसे विशेष तौर पर पूजते हैं। प्रेमी-प्रेमिकाओं के लिए भी यह खास दिलचस्पी का स्थल बन गया। तभी से हर साल मकर संक्रांति के दिन यहां नटबली मेला लगता है।

रेवड़ी चढ़ाकर मांगते प्रेम का आशीर्वाद

नटबली की मजार में प्रेमी युगल मीठी रेवड़ी का प्रसाद चढ़ाते हैं और जीवन भर मधुर संबंधों को कायम रखने की कामना करते हैं। प्रेमी जोड़ों का मानना है कि अपने प्रेम को पाने में नाकाम रहे नटबली व उसकी प्रेमिका ताे अपनी जान देकर इतिहास रच दिया था, लेकिन वह प्रेिमयों की मनोकामना पूरी करते हैं।

नटों के बलिदान का प्रतीक है नटबली मेला

हालांकि नटबली मेले की पृष्ठभूमि में प्रेमी-प्रेमिका की कहानी को इतिहासकार नकारते हैं। उनका कहना है कि यह मात्र एक किवदंती है। बताते हैं कि दरअसल मप्र के सरबई गांव के नटों ने भूरागढ़ दुर्ग को बचाने के लिए अंग्रेजों से युद्ध कर अपने प्राण न्यौछावर कर दिए थे। उनके बलिदान और बहादुरी की याद में नटबली स्थल बनाया गया। वैसे इतिहासकारों का मानना है कि इस स्थान पर कई और क्रांतिकारियों की समाधि और कब्रें भी हैं। लेकिन प्रेमी-प्रेमिका की कहानी ने इसे पीछे कर दिया है।

मकर संक्रांति पर ही हुए थे क्रांतिकारी शहीद

मकर संक्रांति (14 जनवरी) इतिहास के पन्नों में भी महत्वपूर्ण है। बुंदेली क्रांतिकारियों ने 1857 की क्रांति में अंग्रेजों से मोर्चा लेकर बड़ी संख्या में प्राण गंवाए थे। इनमें नट और मुस्लिम काफी संख्या में थे। अन्य जातियों के लोग भी शामिल रहे। इतिहासकार बताते हैं कि मकर संक्रांति के दिन ही अंग्रेज तानाशाह व्हिटलाक की 10 हजार सेना ने हमला करके गोयरा मुगली गांव पर कब्जा कर लिया। वहां से आगे बढ़ी अंग्रेजी फौज का क्रांतिकारियों ने भूरागढ़ दुर्ग में जमकर मुकाबला किया। बड़ी संख्या में क्रांतिकारी शहीद हुए। इस युद्ध का नेतृत्व नवाब अली बहादुर सानी ने किया था। तभी यह नारा गूंजा था कि “खल्क खुदा का, मुल्क बादशाह का, दुआ नवाब अली बहादुर की’।

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