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बांदा। कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की द्वादशी पर महेश्वरी देवी और संकट मोचन मंदिर में तुलसी व शालिग्राम विवाह की रस्म अदा की गई। कार्तिक मास स्नान करने वाली महिलाओं ने दिन भर निर्जल उपवास रखा और विधिविधान से पूजन किया। इसके बाद गाजे.बाजे के साथ बारात शहर में घूमी। मंदिर में बारातियों की खूब आवभगत हुई।
निर्जल व्रत रखकर की विधिविधान से की पूजा
महिलाओं के समूहों ने शनिवार सुबह संकट मोचन व महेश्वरी देवी मंदिर में धूमधाम से देवी तुलसी और सालिगराम का विवाह रचाया। उपवास रखकर घरों में भी महिलाओं ने आंगन में विराजी तुलसी मैया को आकर्षक ढंग से सजाया। साड़ी पहनाकर मैया तुलसी का चूड़ीए बिंदी आदि से आकर्षक श्रंगार किया। मांगलिक गीत गाते हुए घर में बनाये तरह.तरह के मीठे पकवानों से तुलसी मैया का भोग लगाया। पंण्कैलाश द्विवेदी ने बताया कि इस संबंध में एक कथा प्रचलित है कि महासती वृंदा शंखासुर नामक दैत्य की पतिव्रता पत्नी थी।
भगवान ने दैत्य शंखासुर को मारने की कोशिश कीए लेकिन महासती वृंदा के सतीत्व के प्रभाव के कारण भगवान की भी सारी शक्तियां विफल हो रही थीं। शंखासुर के वध की देवताओं ने योजना बनाई। एक बार जब महासती वृंदा स्नान कर रही थींए तभी भगवान श्रीहरि ने शंखासुर का रूप धारण किया और उसके साथ मिलन किया। पतिव्रत धर्म टूट जाने से महासती वृंदा ने मारे क्रोध के भगवान श्रीहरि को पत्थर का होने का श्राप दे डाला।
इस पर भगवान श्रीहरि ने वृंदा को वृक्ष होने का श्राप दे दिया। तब श्रीहरि ने महासती के श्राप को सहर्ष स्वीकार करते हुए कहा कि अब वे भी उनके बिना नहीं रह सकते। कलियुग में भगवान श्रीहरि गंडकी नदी से सालिगराम ;ठाकुर जीद्ध के रूप में प्रकट हुए और कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष द्वादशी तिथि को महासती वृंदा से तुलसी के रूप में विवाह रचाया। तभी से तुलसी और सालिगराम का विवाह संपन्न कराकर श्रद्धालु अपने को धन्य मानते हैं।