बांदा: सुख-समृद्धि के लिए रखा देवोत्थान एकादशी व्रत, पूजा अर्चना कर बांटा प्रसाद  

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बांदा। परिवार की खुशहाली के लिये बुंदेलखंड में पूरे वर्ष तीज त्योहार मनाए जाते हैं। इनमें से एक देव दीपावली (देवोत्थान एकादशी) भी है। बुधवार को देवोत्थान एकादशी पर मंदिर व घरों में भगवान श्रीहरि विष्णु का पूजन-अर्चन किया गया। प्रतीक के रूप में भक्तों ने शख ध्वनि के साथ घंटा और घड़ियाल बजाकर उन्हें जगाया और मौसमी फल व मीठा गन्ना अर्पण कर आरती उतारी।

मौसमी फल, सब्जियां और गन्ना की पूजा कर जलाए घी के दीपक

कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवोत्थान एकादशी मनाई जाती है। इस एकादशी का विशेष महत्व माना जाता है। इसे देव दीपावली के नाम से भी लोग जानते हैं। परिवार की सुख-समृद्धि और मोक्ष की प्राप्ति के लिए लोग एकादशी का व्रत रखते हैं। एकादशी के दिन भगवान श्रीहरि विष्णु का पूजन-अर्चन किया जाता है। ज्योतिष और कर्मकांड के ज्ञाता पं.आनंद तिवारी बताते हैं कि आषाढ़ मास को होने वाली देवशयनी एकादशी को देव शयन के बाद जब कार्तिक मास की एकादशी को चातुर्मास की योग निद्रा से भगवान श्रीहरि जागते हैं, तो श्रद्धालु इस दिन को उत्सव के रूप में मनाते हैं।

कार्तिक स्नान करने वाली महिलाओं ने विधि विधान से किया पूजन

श्रद्धालु शंख, घड़ियाल, मृदंग आदि अन्य वाद्ययंत्रों की मंगल ध्वनि और मंत्रोच्चार के साथ भगवान को योग निद्रा से जगाते हैं और षोडाशोपचार विधि से पूजा-अर्चना करते हैं। देवोत्थान एकादशी के दिन भगवान श्रीहरि विष्णु चातुर्मास के बाद निद्रा पूर्ण कर जागृत होते हैं। इसलिए इस दिन लोग मीठे गन्ने से मंडप सजाते हैं। गाय के गोबर से लीप कर भगवान का सिंहासन स्थापित किया जाता है।

कुछ लोग रंगोली भी बनाते हैं। श्रीहरि के स्वागत में उन्हें फल-फूल अर्पित किये जाते हैं। बुंदेलखंड में इस पर्व को लोग धूमधाम मनाते हैं। लोगों का ऐसा मानना है कि एकादशी के दिन व्रत रखने से एक सैकड़ा अश्वमेघ यज्ञ का फल प्राप्त होता है। सभी एकादशियों में सबसे श्रेष्ठ देवोत्थान एकादशी को माना गया है। आज के दिन से ही चातुर्मास पूजन का भी समापन हो जाता हैं और वैवाहिक कार्यक्रमों की शुरूआत हो जाती है। देवोत्थान एकादशी पर मंदिरों व घरों में भगवान श्री हरि विष्णु का विधिवत पूजन किया गया। कार्तिक स्नान करने वाली महिलाओं ने भी केन नदी के घाटों में भगवान विष्णु का पूजन-अर्चन किया।

एकादशी पर खूब चढ़े गन्ने के भाव

एकादशी पूजन में गन्ना और मौसमी फल, शाक-सब्जी अर्पण करने की प्राचीन परंपरा है। इसलिये इनकी जमकर खरीददारी भी होती है। बीते कई वर्षों से लगातार प्रकृति की मार का असर त्योहारों में स्पष्ट दिख रहा है। ऐसे में महंगाई सिर चढ़कर बोल रही है। जनपद में गन्ने की फसल अच्छी न होने से बाजार में गन्ना ऊंचे दामों पर बिका। लोगों ने 25 से 50 रुपए कीमत पर प्रति गन्ना तक खरीदा। इसी प्रकार साग-सब्जी, मौसमी फल बेर, सिंघाड़ा, अमरूद आदि के भी दाम आसमान छू रहे थे। महंगाई के असर के चलते लोगों ने महज रस्मअदायगी के लिए पूजन का सामान खरीदा और अपने भगवान से सुख समृद्धि की कामना की।

पूजा में चढ़ाए मौसमी फल, सब्जियां व गन्ने

देवोत्थान एकादशी पर भगवान की पूजा करते हुए सिंघाड़ा, बेर, मूली, गाजर, केला, सीताफल (शरीफा), ज्वार का भुट्ठा समेत अन्य मौसमी सब्जियां अर्पित कीं। ज्योतिषाचार्य पं.उमाकांत त्रिवेदी के मुताबिक सिंघाड़ा माता लक्ष्मी का सबसे प्रिय फल है। इसका भोग लगाने से मां लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं। वहीं भगवान श्रीहरि विष्णु को केला अर्पण किया जाता है। इससे धन की वृद्धि होती है। वहीं मूली और गाजर को बेहतर स्वास्थ्य का प्रतीक है।

दीवारी नृत्य में खूब चटकीं लाठियां

देवोत्थान एकादशी को देव दीपावली भी कहा जाता हैं। इस दिन बुंदेली लोक नृत्य दीवारी (पाई डंडा) का खासा महत्व होता है। शुक्रवार को देवोत्थान एकादशी पर शहर के महेश्वरी देवी मंदिर में माथा टेककर दीवारी कलाकारों ने खूब लाठियां भांजीं। दीवारी नृत्य का उत्कृष्ट प्रदर्शन देखकर मौजूद लोगों ने दातों तले अंगुलियां दबा ली। दीवारी कलाकारों ने नृत्य करते शहर के विभिन्न मंदिरों में माथा टेका। शाम ढ़लते ही लोगों ने पूजा अर्चना के बाद जमकर आतिशबाजी की।

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