सुहाग की सलामती के लिए सोमवार को वट सावित्री व्रत रखेंगी सुहागिनें, ऐसे करें पूजा

लखनऊ। सुहाग की सलामती के लिए सोमवार को सुहागिनें ”वट सावित्री व्रत” रखेगी। धार्मिक मान्यता के अनुसार यह व्रत हिन्दी माह के ज्येष्ठ मास की कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि को रखा जाता है। साधारणतः जनमानस में इस व्रत को ‘बरगदाई‘ भी कहते हैं। इस व्रत में बरगद के वृक्ष की पूजा की जाती है। पं. अनिल कुमार पाण्डेय बताते हैं कि सुहागिनें इस तिथि में मौली, रोली, धूप, फूल, खरबूजा, भीगे चने व अन्य मौसमी फल, पूड़ी-पकवान के साथ बरगद के वृक्ष का पूजन करती हैं। पूजा में वृक्ष की जड़ का जल से सिंचन करती हैं। इसके बाद कच्चे सूत से वृक्ष की एक सौ आठ बार या यथाशक्ति परिक्रमा कर सूत लपेटती हैं।

पौराणिक मान्यता है कि वट वृक्ष के ही नीचे सावित्री ने अपने पति सत्यवान की मृत्यु हो जाने के बाद भी यमराज को प्रसन्न कर उन्हें वापस मांग लिया था। उनके पति पुनः जीवित हो गए थे। तभी से सुहागिनें ज्येष्ठ अमावस्या की तिथि को इस व्रत का अनुष्ठान करती हैं।

सनातन परम्परा में जिस वृक्ष, पशु, पक्षी से मनुष्य के जीवन निर्वाह में योगदान मिलता है, उसकी पूजा कर उसे पोषित और उसके प्रति आदर -सम्मान बनाए रखने के लिए पूजा का विधान किया गया। इसी प्रकार अक्षय वट का पौराणिक महत्व के साथ-साथ मानव जीवन में भी बड़ा योगदान है। अक्षय धर्मग्रंथों में ऐसा माना गया है कि वट वृक्ष को देव वृक्ष कहा गया हैं । मान्यता है कि इस वृक्ष के मूल में ब्रह्मा, मध्य में भगवान विष्णु और अग्रभाग में भगवान शिव विरामान होते हैं। देवी सावित्री भी इस वृक्ष में प्रतिष्ठित रहती हैं। कहा गया है कि प्रलय काल में इसी वृक्ष के पत्तों पर भगवान श्रीकृष्ण ने बालरूप में मार्कण्डेय ऋषि को प्रथम दर्शन दिए थे। प्रयागराज में वेणीमाधव के पास अक्षयवट प्रतिष्ठित है। गोस्वामी तुलसी दास ने इस वृक्ष को ‘श्रीरामचरित् मानस‘ तीर्थराज का छत्र बताया है। इस प्रकार तीर्थो में पंचवटी का विशेष महत्व है। पांच वटों से युक्त इस स्थान को पंचवटी कहा गया है। कुम्भज मुनि के परामर्श से भगवान श्रीराम भार्या सीता और अनुज लक्ष्मण के साथ अपने वनवास काल में यहीं पर निवास किया था। जिस प्रकार से बरगद का वृक्ष दीर्घकाल तक अक्षय बना रहता है उसी प्रकार से दीर्घायु, अक्षय सौभाग्य व निरंतर अभ्युदय की प्राप्ति के लिए बरगद के वृक्ष की पूजा की जाती है।

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