भूसा के बढ़ते दामों से पशुपालक पशुओं को बेचने को मजबूर

दीपक गुप्ता

मथुरा(नौहझील) कस्बा व आसपास के क्षेत्र के गांवों में भूसा के बढ़ते दामों से पशुपालकों को भूसा ना मिलने से परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। जिसकी वजह से पशुपालक पशुओं को बेचने पर मजबूर हो रहे हैं।कस्बा व आसपास के क्षेत्रों में बीते वर्ष एक भूसा ट्रॉली सोलह सौ रुपए में मिल जाती थी।लेकिन आज महंगाई के दौर में एक भूसा ट्राली ₹4000 से ₹5000 तक बिक रही है।इतने में भी भूसा समय पर नहीं मिल रहा है।बड़े काश्तकार किसानों से बात करने पर बताया कि बाहर के व्यापारी वर्ग खेत से ही महंगे दाम पर भूसा लेने के लिए आ रहा हैं तो हमको खेत से अन्य दूसरी का भेजने में क्या फायदा है।बाहर के व्यापारी वर्ग की भूसा की खरीदारी होने से क्षेत्र में भूसा का संकट बना हुआ है। पशुपालक ओमप्रकाश ने बताया 100 रुपया मन का भूसा पशुओं को खिलाने पर दूध ₹45 किलो बिकता था अब 350 रुपया मन भूसा खरीदने पर भी दूध उसी रेट बिक रहा है।जिसकी वजह से पशु बेचने को मजबूर हैं।भूसा इतना महंगा होने के बाद भी समय पर नहीं मिल रहा है।इससे पशुपालकों पर महंगाई की दोहरी मार पड़ रही है। पशुपालक राम अवतार, अतुल कुमार, अशोक कुमार, रघुवीर ने बताया कि भूसा की महंगाई ने पशुपालकों को चिंता में डाल दिया है। जिन लोगों ने फसल की कटाई के समय भूसा का स्टॉक नहीं किया था। अब ऐसे लोग अब दोगुने दामों में भूसा की खरीद रहे हैं। सस्ते के लालच में किसान अपनी फसलों को हार्वेस्टर से कटवा लेते हैं। इससे भूसे की कमी हो जाती है। व्यापारी और पशुपालक भूसा का स्टॉक कर लेते हैं, वह बाद में महंगी दरों में बेचते हैं।ग्रामीण क्षेत्र के ज्यादातर किसान गेहूं की फसल को थ्रेसर से काटने के बजाय हार्वेस्टर से कटवाना उचित समझते हैं। थ्रेसिँग से हार्वेस्टर सस्ता पड़ता है । इस प्रक्रिया में भूसा नहीं बनता है। इसके कारण क्षेत्र में भूसा की कमी हो जाती है और महंगाई बढ़ जाती है ।
पिछले कई वर्षों से हार्वेस्टर से धान की फसल की कटाई कराने के बाद किसान पुआल को खेतों में ही जला देते थे। इस पर लगी रोक सरकार ने इस वर्ष हटा दी है। अबकी बार किसानों ने पुआल कम मात्रा में खेतों में जलाया और उसे पशुपालक अपने पशुओं के लिए चारा के रूप में ले गए ।
भूसा की महंगाई के कारण बाजरे की करब की कीमत भी बढ़ गई है। बीते वर्ष करब के लिए लोग ढूंढे नही मिलते थे। इस बार इसके भी दरें आसमान छू रही हैं। इसकी कीमत प्रति बंडल 100-150 रुपये तक पहुंच गई है ।पशुपालकों की माने तो एक भैंस दिन में करीब 15 किलो भूसा खाती है। वहीं खल, चुनी, चापट अलग। भैंस का बच्चा प्रतिदिन करीब पांच किलो भूसा खाता है। एक भैंस पर प्रतिदिन करीब 300 से 400 रुपये खर्चा होता है। इस समय खुराक महंगी और दूध का उत्पादन कम हो गया है। कस्बों में दूध का भाव 60 रुपये प्रति लीटर लीटर है। ग्रामीण क्षेत्र में आज भी दूधिया पशुपालकों से 45-50 रुपये प्रति लीटर दूध ले रहे हैं।

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