भास्कर समाचार सेवा
हरिद्वार। प्रसिद्ध महानायक क्रांतिकारी मंगल पांडेय ने सर्व प्रथम ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ क्रांति की शुरुआत की थी और 29 मार्च 1857 को बैरकपुर में अंग्रेजों पर हमला कर उन्हें घायल कर दिया था। हालांकि वह पहले ईस्ट इंडिया कंपनी में एक सैनिक के तौर पर भर्ती हुए थे। लेकिन ब्रिटिश अफसरों की भारतीयों के प्रति क्रूरता को देखकर उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था।
यह विचार एसएमजेएन कालेज में आयोजित अमृत महोत्सव विचार श्रृंखला के तहत् डा. सुनील कुमार बत्रा ने व्यक्त किए। डा.बत्रा ने कहा कि अंग्रेज अधिकारियों ने भारतीय सैनिकों पर अत्याचार तो हो ही रहा था। लेकिन हद तब हो गई। जब भारतीय सैनिकों को ऐसी बंदूक दी गईं। जिसमें कारतूस भरने के लिए दांतों से काटकर खोलना पड़ता था। इस नई एनफील्ड बंदूक की नली में बारूद को भरकर कारतूस डालना पड़ता था। वह कारतूस जिसे दांत से काटना होता था। उसके ऊपरी हिस्से पर चर्बी होती थी। इस प्रकार से यह चिंगारी हिन्दू मुस्लिम एकता की मिसाल बनी तथा देश की आजादी में मील का पत्थर साबित हुईं।
मंगल पांडे ने जलायी थी स्वतंत्रता संग्राम की अलख: डा. बत्रा
डा.सरस्वती पाठक ने इस अवसर पर कहा कि मंगल पांडे ने अंग्रेजों के खिलाफ बैरकपुर में जो बिगुल फूंका था। वह पूरे उत्तर भारत में फैल गया। इतिहासकारों का कहना है कि विद्रोह इतनी तेजी से फैला था कि मंगल पांडे को फांसी 18 अप्रैल को देनी थी लेकिन 10 दिन पहले 8 अप्रैल को ही दे दी गई। डा. संजय माहेश्वरी ने कहा कि 1857 की क्रांति भारत का पहला स्वतंत्रता संग्राम था।
इस अवसर पर डा. विजय शर्मा, डा.विनीता चौहान, डा. अमिता श्रीवास्तव, डा. पदमावती तनेजा, डा. आशा शर्मा, डा. सरोज शर्मा, डा. मोना शर्मा, डा. महिमा नागयान, डा. रेणुसिंह, दीपिका आंनद, प्रियंका प्रजापति, प्रिंस श्रोत्रिय, विनीत सक्सेना, वैभव बत्रा, अंतिम त्यागी, मोहन चन्द्र पांडे आदि उपस्थित रहे।