मैनपुरी : नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति से संबंधित कार्यशाला का हुआ आयोजन

मैनपुरी। आधुनिक युग में शैक्षिक शैली में समय-समय पर किये गये बदलाव एवं अध्यापकों द्वारा अपनायी गयी कार्य पद्धति विद्यार्थियों के लिए निश्चित ही लाभदायक होती है। ज्ञातव्य है कि शहर की संस्था सुदिती एजूकेशनल एण्ड रिसर्च फाउण्डेशन मैनपुरी द्वारा अध्यापकों को नये-नये शैक्षिक आयाम के उद्देश्य से विभिन्न कार्यशालाएं कराई जाती हैं। इसी क्रम में सुदिती एजूकेशनल एण्ड रिसर्च फाउण्डेशन मैनपुरी के तत्वावधान में अध्यापकों को नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति के बारे में जानकारी देने हेतु एक कार्यशाला का आयोजन किया गया।

सुदिती एजूकेशनल एण्ड रिसर्च फाउण्डेशन मैनपुरी के तत्वावधान में आयोजित कार्यशाला

सर्वप्रथम प्रशिक्षक विनीता सरीन का परिचय देते हुए जयशंकर तिवारी ने बताया कि सरीन ने शिक्षा के उन्नयन हेतु सैकड़ों कार्यशालाएं सम्पन्न कराते हुए हजारों शिक्षकों को प्रशिक्षण प्रदान किया है। वे सदैव शिक्षा की उच्चगुणवत्ता के लिए चिन्तन करती रहती हैं। प्रशिक्षका ने नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति के बारे में अध्यापक-अध्यापिकाओं को बताया कि इस नीति का उद्देश्य व्यावसायिक शिक्षा से जुड़ी सामाजिक स्थिति पदानुक्रम को दूर करना है और इसके लिए चरणबद्ध तरीके से सभी शिक्षा संस्थानों में व्यावसायिक शिक्षा के कार्यक्रमों को मुख्यधारा की शिक्षा के एकीकरण की आवश्यकता है। इसके लिए माध्यमिक विद्यालय, पॉलिटेक्निक, स्थानीय उद्योग इत्यादि के साथ सहयोग करेंगे।

एक हब और स्पोक मॉडल में स्कूलों में स्किल लैब भी स्थापित किये जाएंगे जो अन्य स्कूलों को सुविधा का उपयोग करने की अनुमति देगा। प्राथमिक से विश्वविद्यालय स्तर तक सभी स्तरों पर शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार एक सतत और चल रही प्रक्रिया है। वर्तमान में इस दिशा में कई पहल की जा रही हैं। सामाजिक शिक्षा, एक स्कूल प्रायोजित योजना के रूप में स्कूल शिक्षा के लिए एक अभिन्न योजना कार्यान्वित की जा रही है और इसका उद्देश्य स्कूली शिक्षा के सभी स्तरों पर समावेशी और समान गुणवत्ता वाली शिक्षा सुनिश्चित करना है। यह पूर्व-विद्यालय, प्राथमिक, उच्च प्राथमिक, माध्यमिक से वरिष्ठ माध्यमिक स्तर तक एक निरंतरता के रूप में ’स्कूल’ की परिकल्पना करता है।

उन्होंने आगे बताया कि हमें विद्यार्थियों की मानसिक क्षमता को दृष्टिगत् करते हुए शैक्षिक क्रिया कलाप करने चाहिए और विषय को जीवन शैली से जोड़ने का प्रयास करना चाहिए। हमारी शैक्षिक प्रक्रिया इतनी सहज एवं सरल हो कि प्रत्येक विद्यार्थी आसानी से समझ सके। विद्यार्थियों को उनकी भूल के सन्दर्भ में बताना चाहिए, लेकिन कभी भी हतोत्साहित करना चाहिए, बल्कि उनकी प्रोन्नति को दर्शाते हुए उत्साहवर्धन भी करना चाहिए। हमें अपने विषय के सन्दर्भ में कितनी पारंगिता है, इसके साथ-साथ हमारे अन्दर यह भी होना चाहिए कि हम अपने विषय को कितनी अच्छाी तरह से विद्यार्थियों तक पहुँचा पाते हैं।

कक्षा में 40 मिनट पढ़ाने के लिए अध्यापक को कम से कम दो घण्टे अवश्य पढ़ना चाहिए तथा समय प्रबन्धन का ध्यान रखते हुए अपने विषय को सुनिश्चित रूप से सम्पन्न करना चाहिए। कार्यशाला में सभी अध्यापक-अध्यापिकाओं ने विभिन्न प्रकार की समस्याओं के सन्दर्भ में विचार विमर्श किया तथा शैक्षिक संचारण में आने वाली समस्याओं के बारे में भी पूछा। कार्यशाला के समापन अवसर पर संस्था के चेयरमैन डा. राम मोहन ने प्रशिक्षका को धन्यवाद ज्ञापित करते हुए कहा कि इस तरह की कार्यशालाएं शिक्षा पद्धति में निश्चित ही एक नया बदलाव लाएंगी एवं विद्यार्थियों को कठिन से कठिन विषयों को भी प्रत्येक अध्यापक आसानी से समझाने में सफल होगा।

कार्यशालाएं शैक्षिक पद्धति में एक महत्वपूर्ण स्थान रखती हैं, बस आवश्यकता है कि हम सुनियोजित रूप से कार्यशाला में अपना प्रतिभाग करें एवं बताई गई सभी महत्वपूर्ण बातों को ध्यान से सुनें और समझें तथा अपनी कक्षाओं में क्रियान्वित करें। प्रत्येक व्यक्ति हमें कोई न कोई नया गुर अवश्य बताता है। हमको विद्यार्थियों के उज्ज्वल भविष्य के लिए अपना भरसक प्रयास करना चाहिए जिससे हम देश के लिए बेहतर भविष्य तैयार करने में कामयाब हो सकें क्योंकि अध्यापक ही प्रत्येक देश का भविष्य बनाने वाले होते हैं। कार्यशाला के सफल आयोजन में संस्था की चेयरमैन डा. कुसुम मोहन के कुशल मार्गदर्शन में समस्त अध्यापक-अध्यापिकाओं का सहयोग सराहनीय रहा।

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