लखनऊ। राजस्थान सरकार ने अपने यहां पुरानी पेंशन लागू करने का ऐलान किया है। इसकी वजह से यहां के कर्मचारियों में भी एक नई ऊर्जा आ गई है। सपा और बसपा ने पहले ही कहा था कि सरकार आने के बाद वह लोग पुरानी पेंशन लागू करेंगे। कांग्रेस भी इसको लेकर सकारात्मक रही है, लेकिन राजस्थान सीएम अशोक गहलोत की ओर से इसे लागू करने के बाद से वह उप्र की राजनीति में चर्चा की विषय बन गए हैं। इसके अलावा कर्मचारी संवर्ग के बीच कांग्रेस को लेकर चर्चा शुरू हो गई है।
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में पुरानी पेंशन पहले से ही एक बड़ा मुद्दा बना हुआ था। राजस्थान सरकार के इस फैसले का यूपी के कर्मचारी संगठनों ने स्वागत किया है और उनका कहना है कि इससे अगली जो भी सरकार आएगी उस पर दबाव बनेगा। कर्मचारी नेताओं का कहना है कि समाजवादी पार्टी ने पहले ही अपने घोषणापत्र में इसका हराम कर रखा है लेकिन बाकी पार्टियों पर भी राजस्थान के इस फैसले का असर पड़ना चाहिए।
कांग्रेस की सरकार हमेशा से ठीक रही- कर्मचारियों
उत्तर प्रदेश चतुर्थ श्रेणी राज्य कर्मचारी महासंघ के अध्यक्ष रामराज दुबे ने कहा कि यूपी में करीब 1300000 कर्मचारी इससे प्रभावित है। 10 मार्च के बाद जो भी सरकार आएगी वह लोग उस पर इसको लेकर भारी दबाव बनाएंगे। उन्होंने कहा कि कर्मचारियों के लिए कांग्रेस की सरकार हमेशा से ठीक रही है। अशोक गहलोत ने राजस्थान में यह कर दिखाया है। इसके अलावा देश में जब छठा वेतनमान लागू किया गया था, तब भी कांग्रेस की सरकार थी। यह अब तक का सबसे अच्छा वेतनमान रहा है।
सातवें वेतनमान के समय बीजेपी की सरकार बनी थी, जिसमें कर्मचारियों को सबसे ज्यादा नुकसान हुआ था। उसमें केवल अधिकारी वर्ग को फायदा मिला था। उन्होंने बताया कि नई पेंशन एक जुए की तरह है जिसमें हर वक्त कर्मचारी को नुकसान ही होना है। पिछले दिनों तमाम जानकारों का कहना था कि घोषणापत्र में शामिल करने के बाद भी सरकार इसको लागू नहीं कर पाएगी। दलील थी कि पिछले 15 सालों में एक बड़ा अमाउंट जो कर्मचारियों के पेंशन में जाना चाहिए था वह नहीं जा पाया है।
उसकी व्यवस्था करना मुश्किल होगा। लेकिन राजस्थान सरकार के इस फैसले के बाद परिस्थितियां बदलेगी। नगर निगम में कार्यरत अर्जुन यादव कहते हैं कि अगर राजनीतिक दल इच्छाशक्ति दिखाएं तो इसको आसानी से लागू किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि राजस्थान सरकार ने यह फैसला देकर कर्मचारियों के हित में बड़ा काम किया है। अब यह पूरे देश के पैमाने में कर्मचारियों के बीच में सबसे बड़ा मुद्दा होगा। बताते चलें कि मौजूदा समय में केवल पश्चिम बंगाल में ही पुरानी पेंशन लागू है।
त्रिपुरा दोनों में ही नई पेंशन व्यवस्था की लागू
उत्तर प्रदेश राज्य कर्मचारी संयुक्त परिषद के महामंत्री शिवबरन सिंह यादव कहते हैं कि नई पेंशन जब लागू की गई थी तो उस समय प्रदेश सरकारों को एक व्यवस्था दी गई थी जिसमें वह अपनी इच्छा से नई और पुरानी पेंशन लागू कर सकते हैं। तब त्रिपुरा, केरल और पश्चिम बंगाल ने अपने यहां पुरानी पेंशन बरकरार रखने का फैसला किया था। हालांकि 2017 के आते केरल और त्रिपुरा दोनों में ही नई पेंशन व्यवस्था लागू कर दी गई थी लेकिन पश्चिम बंगाल में अभी भी पुरानी पेंशन लगता चल रही है। उत्तर प्रदेश में भी समाजवादी पार्टी ने अपने घोषणा पत्र में इस को शामिल किया गया है।
करीब 5 से 7 वोट प्रभावित करता है कर्मचारी
उत्तर प्रदेश में कर्मचारियों की संख्या करीब 17 से 20 लाख के बीच है। एक कर्मचारी करीब 5 से 7 वोट प्रभावित करता है। ऐसे में यह संख्या करीब एक करोड़ के आसपास पहुंच जाती है। यूपी में 4 चरणों का चुनाव हो चुका है और तीन चरण के चुनाव अभी बाकी है। अब आने वाले 3 चरणों के चुनाव में पुरानी पेंशन वोट के आधार पर भी बड़ा मुद्दा हो सकता है। तीन चरण का चुनाव पूर्वी उप्र में होना है। जहां से सबसे ज्यादा कर्मचारी वर्ग आता है। ऐसे में यह फैसला वोट पर असर डालेगा।
कर्मचारियों को कांग्रेस पर है बेहद विश्वास
उप्र के वाइस चेयरमैन पंकज श्रीवास्तव का कहना है कि यूपी के कर्मचारी को यह बात समझ में आ गई है कांग्रेस यह काम कर सकती है। हमने करने दिखा दिया है। यंका गांधी ने पहले ही कहा था कि इसका रास्ता निकाला जाएगा। हम इसपर सहमत होंगे। यह घोषणा और ऐलान का मामला नहीं है। कांग्रेस ने ही पेंशन का इस देश में प्रावधान किया था। लोग अपना बुढ़ावा सामान्य के साथ काटते रहे। बीजेपी ने इसको खत्म करने की शुरूआत की थी। यह कांग्रेस की स्थापित योजना था। इसको खत्म कर लाखों लाख लोगों का जीवन नष्ट करने का काम किया है। कांग्रेस पार्टी सत्ता में आती है तो निश्चित तौर पर इसको लागू किया जाएगा।