कांग्रेस एक ऐसी पार्टी रही जिस पर हमेशा परिवारवाद के तहत काम करने का आरोप लगता रहा. राजनीति में परिवारवाद शब्द कोई नया नहीं है. अब चाहे तो लालू और तेजस्वी का उदाहरण ले सकते हैं या फिर चिराग पासवान का लेकिन इस बार बिहार कि राजनीति में इस बार परिवारवाद जमकर देखने को मिलेगा. क्यूंकि इस बार एक दो नहीं बल्कि तीन जोड़ी ससुर दामाद चुनावी मैदान में उतरे हैं और चुनाव का जलवा तो देखिये सभी अलग अलग विधानसभा क्षेत्र से अपनी किस्मत आज़मा रहे हैं. अगर जोड़ियों कि बात कि जाए तो एक जोड़ी तो एक ही दल से है और एक ही जिले से चुनाव भी लड़ रहे हैं तो दूसरी जोड़ी इस खेल में एक ही दल से है पर अलग अलग जिले से चुनाव लड़ेगी और तीसरी जोड़ी का घमासान बड़ा ही रोमांचक होगा क्यूंकि तीसरी जोड़ी दो दल और दो जिले से चुनावी मैदान में बिगुल बजाने को तैयार हैं.
अब इस चुनाव में ससुर दामाद कि जोड़ी जदयू (जनता दल यूनाइटेड), राजद (राष्ट्रीय जनता दल) और हम (हिन्दुस्तान आवाम मोर्चा) के टीमों से खेलगी. इन दिलचस्प जोड़ियों में सबसे पहले हैं हम सुप्रीमो और बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी जो कि गया जिले की इमामगंज सीट से मैदान में कूद पड़े हैं तो उन्होंने अपने दामाद देवेन्द्र मांझी को जहानाबाद जिले की मखदुमपुर सीट से उतारा. हैरत कि बात ये है कि जीतनराम मांझी की समधिन भी इस बार चुनाव में भाग्य आज़माएंगी. जीतन राम मांझी कि समधिन ज्योति देवी बाराचट्टी से चुनाव लड़ रही हैं.
ठीक इसी प्रकार नरेन्द्र नारायण यादव मधेपुरा जिले की आलगनगर सीट से चुनाव लड़ेंगे, तो उनके दामाद निखिल पहली बार चुनावी मैदान में कूद चुके हैं, निखिल मंडल मधेपुरा जिले से ही जदयू के प्रत्याशी हैं. अब लालू प्रसाद यादव को कौन नहीं जानता, उनके बेटे तेजप्रताप यादव और ससुर चंद्रिका राय इस बार ससुर और दामाद कि तीसरी जोड़ी हैं. दोनों ही विधानसभा चुनाव में अपनी किस्मत आजमा रहे हैं. उम्मीद कि जा रही है कि दामाद तेजप्रताप यादव समस्तीपुर के हसनपुर से चुनाव लड़ सकते हैं तो वहीं चंद्रिका गया जदयू कि ओर से अपनी पुरानी सीट परसा से हुंकार भरेंगे.
अब ये तो थी ससुर और दामाद कि जोड़ी इस बार चुनाव में एक जोड़ी पति पत्नी कि भी है. दरअसल जदयू के टिकट पर विधायक कौशल यादव नवादा सीट से तो उनकी धर्मपत्नी पूर्णिमा देवी गोविंदपुर सीट से मैदान में हैं. ससुर और दामाद कि जोड़ी, पति और पत्नी कि जोड़ी इस बार चुनाव में परिवारवाद का नया ही खेल देखने को मिलेगा, ऐसा लग रहा है मानो कि इस बार चुनावी मैदान में बेटा, बेटी, पति, पत्नी, बहु ससुर और दामाद सभी राजनीतिक विरासत लिए मैदान में कूद गए हैं. ऐसे ही दो चचेरे भाई भी अलग अलग सीट और अलग अलग दल से इस बार चुनाव लड़ेंगे. जदयू के टिकट पर ओबरा से सुनील कुमार तो गोह से राजद के सिम्बल पर भीम कुमार सिंह मैदान में हैं. यानी कि इस बार सियासत कि गलियों में वो चेहरे सामने आएंगे जो अपने पिता या ससुर के दम पर राजनीतिक पारी कि शुरुआत करेंगे. अब देखना होगा कि इस खेल में कौन टिक पायेगा और कौन बिना खाता खोले पवेलियन वापस लौट जाएगा, कौन दी हुई विरासत को संभाल पायेगा और कौन सब मिट्टी पलीद कर देगा.