
लखनऊ डेस्क: यूएई और सऊदी अरब में भारतीय नागरिकों को मौत की सजा मिलने की स्थिति बेहद चिंताजनक है। वर्तमान समय में भारतीय प्रवासी विदेशों में कानूनी समस्याओं का सामना कर रहे हैं। हाल ही में, संयुक्त अरब अमीरात (UAE) में हत्या के विभिन्न मामलों में दो भारतीय नागरिकों को फांसी दी गई। विदेश मंत्रालय ने पुष्टि की है कि इन व्यक्तियों के नाम मुहम्मद रिनाश अरंगीलोट्टू और मुरलीधरन पेरुमथट्टा वलप्पिल थे, जो मूल रूप से केरल के निवासी थे। यह घटना विदेशों में मौत की सजा पाने वाले भारतीय नागरिकों की स्थिति की गंभीरता को उजागर करती है, खासकर UAE और सऊदी अरब जैसे देशों में।
मुहम्मद रिनाश अरंगीलोट्टू और मुरलीधरन पेरुमथट्टा वलप्पिल को क्रमशः एक अमीराती नागरिक और एक भारतीय नागरिक की हत्या के आरोप में मौत की सजा दी गई। यूएई की सर्वोच्च अदालत (कोर्ट ऑफ कैसेशन) ने उनकी सजा को बरकरार रखा और 28 फरवरी 2025 को उन्हें फांसी दी गई।
अरंगीलोट्टू का मामला विशेष रूप से विवादास्पद रहा, क्योंकि उनके परिवार का कहना था कि हत्या एक दुर्घटना थी। उनकी मां ने केरल के मुख्यमंत्री से मामले में हस्तक्षेप की अपील की थी। इसके बावजूद, दोनों व्यक्तियों को हर संभव कांसुलर और कानूनी सहायता प्रदान किए जाने के बावजूद, वे सजा से बच नहीं सके।
यूएई में एक और भारतीय नागरिक, शहजादी खान, को भी फांसी दी गई। वह उत्तर प्रदेश के बांदा जिले की निवासी थीं, और 2022 में उनके देखरेख में एक चार महीने के बच्चे की मौत हो गई, जिसके बाद उन पर हत्या का आरोप लगाया गया। उनके परिवार का दावा था कि बच्चे की मौत टीकाकरण में गलती की वजह से हुई, लेकिन अदालत ने उन्हें दोषी ठहराया और 15 फरवरी 2025 को फांसी दी।
विदेशों में मौत की सजा का सामना कर रहे भारतीय नागरिकों की संख्या बढ़ रही है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार, फरवरी 2025 तक, 54 भारतीय नागरिक विदेशों में मौत की सजा पा रहे हैं, जिनमें सबसे अधिक संख्या यूएई (29) और सऊदी अरब (12) में है। इसके अलावा, कुवैत, कतर और यमन में भी कुछ भारतीय नागरिकों को मौत की सजा का सामना करना पड़ रहा है। भारत सरकार इन मामलों में कांसुलर और कानूनी सहायता प्रदान करने का प्रयास कर रही है, लेकिन इन देशों के सख्त कानून और शरिया कानून के अनुपालन के कारण यह सहायता अक्सर पर्याप्त नहीं हो पाती।
विशेषज्ञों का मानना है कि भारतीय प्रवासी श्रमिकों की बड़ी संख्या को मौत की सजा मिलने का कारण उनकी कठिन जीवन स्थितियां और कानूनी सुरक्षा की कमी है। कई भारतीय श्रमिकों का कहना है कि उनके पासपोर्ट उनके नियोक्ताओं द्वारा जब्त कर लिए जाते हैं और वे कठिन परिस्थितियों में काम करने पर मजबूर होते हैं। इसके अलावा, उन्हें उचित कानूनी प्रतिनिधित्व भी नहीं मिल पाता, जिससे उनकी स्थिति और अधिक जटिल हो जाती है।
भारत सरकार ने विदेश राज्य मंत्री कीर्ति वर्धन सिंह के अनुसार, विदेशों में भारतीय नागरिकों को कांसुलर और कानूनी सहायता प्रदान करने के प्रयास किए हैं, लेकिन कड़े कानूनी नियमों और प्रक्रियाओं के कारण कई मामलों में ये प्रयास सफल नहीं हो पाते।