कई बार आपके मन में सवाल आया होगा कि आखिरी सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) और हाईकोर्ट (High Court) के जज बनते कैसे हैं? अगर जज बनना है तो क्या करना पड़ता है? आपके इन सभी सवालों का जवाब इस आर्टिकल में आपको मिलेगा। 26 जनवरी, 1950 को जब देश का संविधान लागू हुआ, तब दो दिन बाद 28 जनवरी, 1950 को सुप्रीम कोर्ट का गठन किया गया। इससे पहले तक इसे फेडरल कोर्ट ऑफ इंडिया के नाम से जाना जाता था। 1 अक्टूबर, 1937 से 28 जनवरी, 1950 तक यह इसी जान से पहचाना जाता था। आइए जानते हैं कैसे बनते हैं सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के जज, कैसे होती है उनकी नियुक्ति और क्या होनी चाहिए योग्यता..
कौन बन सकता है हाईकोर्ट का जज
भारत का नागरिक होना चाहिए.
लॉ में बैचलर डिग्री होनी चाहिए.
10 साल तक वकालत (Law) करने का अनुभव होना चाहिए.
सुप्रीम कोर्ट के जज की योग्यता
भारत का नागरिक होना चाहिए.
हाईकोर्ट में कम से कम पांच साल तक जज रह चुके हो या फिर
हाईकोर्ट में कम से कम 10 साल तक वकालत का अनुभव होना चाहिए.
राष्ट्रपति के विचार में जाने माने कानूनविद भी जज बन सकते हैं.
सुप्रीम कोर्ट में जज की नियुक्ति की प्रक्रिया
सुप्रीम कोर्ट के जजों की नियुक्ति के बारे में संविधान में अनुच्छेद 124 (2) में विस्तार से बताया गया है। संविधान के मुताबिक, सर्वोच्च न्यायालय के जजों की नियुक्ति कॉलेजियम की सलाह पर भारत के राष्ट्रपति करते हैं। कॉलेजियम में देश के सीजेआई और सुप्रीम कोर्ट के चार वरिष्ठ जज होते हैं। यही कॉलेजियम हाईकोर्ट जज की भी नियुक्ति करता है। सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश की सलाह सबसे अहम मानी जाती है।
इस तरह काम करता है कॉलेजियम
सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम का कमान खुद सीजेआई संभालते हैं। इसमें चार सीनियर जज होते हैं। कॉलेजियम की सिफारिश मानना सरकार के लिए आवश्यक होता है। सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालय के जजों का ट्रांसफर पर भी फैसला कॉलेजियम ही करता है। कोलेजियम ही यह भी फैसला करता है कि हाईकोर्ट का कौन सा जज प्रमोट होकर सुप्रीम कोर्ट जाएगा। जब कोलेजियम किसी नाम की सिफारिश सरकार के पास भेजता है, तब सरकार सिर्फ उन नामों के पुनर्विचार के लिए कॉलेजियम को वापस फेज सकता है। लेकिन अगर कॉलेजियम दोबारा उस नाम के सरकार को भेज देता है, तब सरकार को इसे मानना ही पड़ता है।