
भारत देश लोकतान्त्रिक देश है यंहा सारे काम कनून के दायरे में होते है। यंहा हो रहे हर अपराध के लिए कानून के अंदर सजा का बराबर प्राबधान मौजूद है। आज के समय मैं ज्यादा तर जघन्य अपराधों के लिए उम्र कैद या फिर फांसी की सजा दी जाती है। लेकिन कुछ देश ऐसे भी है जंहा जहर का इंजेक्शन देकर कैदी को सजा दे दी जाती है। लेकिन इन सब से अलग अगर हम बात करे कुछ साल पहले की अन्य देशो की तो बन्हा जिस तरह से अपराधी को सजा देने का प्रावधान मौजूद था। उसे देख कर अपराधी की आत्मा तक काँप उठती थी। तो आइये जानते है कि दुनिया के अलग अलग देशो में अपराधी को किस तरह से मौत की सजा दी जाती थी जिससे देखने बालो तक की रुंह काँप उठती थी।
1- बीच से चीरना
दुनिय के कई देशो में अपराधी को अलग अलग तरह से टॉर्चर किया जाता था। इनमे से सबसे ज्यादा खतरनाक था। मध्यकाल का समय उस समय के अपराधी को सजा देने के लिए अपराधी को बीच से चीर दिया जाता था उसके बाद उसके दोनों पैरो को एक रस्सी से बांध कर। लटका दिया जाता था। ऐसा करने से अपराधी की शरीर में मौजूद खून धीरे धीरे उसके मस्तिष्क में पहुँच जाता था। और उसके बाद अपराधी के शरीर के बीच से दो हिस्से कर दिए जाते थे।
2-कीलों वाली कुर्सी
यूरोप में कुछ साल पहले तक अपराधी को सजा देने का सबसे अलग और खतरनाक तरीका अपनाया जाता था। अपराधी को कीलो बाली कुर्शी पर बैठा कर उसे बांध दिया जाता था। फिर उसके नीचे आग लगा कर रख दी जाती थी। जिसके बाद अपराधी के शरीर के बैठे हुए निचले हिस्से में आग पहुँचती थी तब बह उस कुर्शी से थोड़ा उठा था लेकिन बंधे होने की बजह से उसे फिर से बन्हि बैठना पड़ता था और कुर्शी पर मौजूद कीले लगातार उसके बदन को चुभती रहती थी और खून निकलता रहता था। और अंत में अपराधी की मृत्यु हो जाती थी।
3- कीलो वाला पिंजरा
मध्यकाल के समय में ही कैदियों के लिए एक विशेष तौर की सेल में रखा जाता था। जिसके हर हिस्से में लोहे की किले मौजूद होती थी। और फिर उनके साथ पूछ ताछ की जाती थी। गुनाह न कबूलने पर उन्हें उन किलो पर लिटा कर धकेला जाता था जो उनके शरीर को चीर कर रख देती थी।
4- सिर धड़ से अलग
दोस्तों 5-15 शताब्दी के बीच अपराधी को फांसी की बजाय एक तेज धार बाले ब्लेड के नीचे रखा जाता था। और उस अपराधी का सर उस जगह रखा जाता था जंहा ब्लेड गिरना होता था। मौत की सजा देने के लिए अपराधी के सर पर ब्लेड छोड़ दिया जाता था जिससे एक झटके के साथ ही अपराधी की गर्दन धड़ से अलग हो जाती थी।
5- पिरामिड की कुर्सी
कई सालो पहले अपराध की सजा देने के लिए एक और तरह की सजा का प्राबधान था उस सजा में कैदी को एक पिरामिड के आकर बाली कुर्शी पर बिठाया जाता था। उसके बाद उसके हांथो को बांध कर उन्हें खींचा जाता था। जिससे अपराधी का प्राइवेट पार्ट पूरी तरह से जख्मी हो जाता था।















