लखनऊ । अपने रसीले आम और ढोलक को लेकर मशहूर अमरोहा संसदीय सीट के राजनीतिक इतिहास की बात करें तो यहां पर कभी किसी भी दल का गढ़ नहीं रहा है। पिछले 4 चुनाव में हर बार जीत किसी अन्य दल के खाते में चली जाती है। लेकिन कोई जमाना था जब ये सीट वामदलों का मजबूत किला मानी जाती थी। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में अमरोहा सीट इकलौती ऐसी सीट हैं, जहां वामदलों ने लगातार दो बार जीत दर्ज की।
उल्लेखनीय है कि किसी जमाने में पूर्वांचल, पश्चिमी उत्तर प्रदेश और तराई क्षेत्र की तकरीबन एक दर्जन संसदीय सीटों पर वामदलों का प्रभाव था। मुस्लिम बहुल अमरोहा सीट कभी किसी दल का गढ़ नहीं रही है।
1967 में पहली बार लहराया लाल झंडा
अमरोहा संसदीय सीट 1957 में अस्तित्व में आई। पहले चुनाव में कांग्रेस ने के हिफ्जुर्रहमान विजयी हुए। 1962 के दूसरे चुनाव में भी हिफ्जुर्रहमान कांग्रेस की टिकट पर जीते। साल 1967 के चौथे आम चुनाव में यहां पहली भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा) ने जीत के साथ अपना खाता खोला। भाकपा प्रत्याशी इशहाक संभली 70306 (25.75 प्रतिशत) वोट पाकर जीते। भारतीय जनसंघ (बीजेएस) प्रत्याशी आर. सिंह 66249 (24.26 प्रतिशत) वोट हासिल कर दूसरे नंबर पर रहे। कांग्रेस उम्मीदवार सी.एस.एस. सिंह 59658 (21.85प्रतिशत) वोट के साथ तीसरे स्थान पर रहे। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में वामदलों की यही पहली जीत थी।
चौथे आम चुनाव में भाकपा के 17 प्रत्याशियों ने चुनाव लड़ा। वहीं साठ के दशक में पैदा हुई कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया-मार्क्सवादी (माकपा) ने भी छह प्रत्याशी मैदान में उतारे। पांच सीटों पर भाकपा और एक सीट पर माकपा ने जीत दर्ज की। यह भाकपा का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन था। इस चुनाव में भाकपा को 3.62 फीसदी वोट मिले। भाकपा ने अमरोहा, घोसी, गाजीपुर, बांदा और मुजफ्फरनगर सीटे जीती थी। वहीं माकपा ने वारणसी सीट पर कब्जा किया था। माकपा के खाते में 1.19 फीसदी वोट आए।
1971 में मिली आखिरी जीत
1971 के आम चुनाव में अमरोहा, घोसी, गाजीपुर और मुजफ्फनगर चार सीटों पर भाकपा के उम्मीदवार जीते और उसे 3.70 फीसदी वोट मिले। लेकिन यह पार्टी का अन्तिम श्रेष्ठ प्रदर्शन था। अमरोहा सीट पर भाकपा के इशहाक संभली 92580 (34.50 प्रतिशत) वोट हासिल कर जीते। दूसरे स्थान पर रहे निर्दलीय उम्मीदवार चंद्रपाल सिंह के खाते में 61538 (22.94 प्रतिशत) वोट आए। वहीं संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी प्रत्याशी रामशंकर कौशिक 51821 (19.31 प्रतिशत) वोट प्राप्त कर तीसरे नंबर पर रहे। भाकपा की इस सीट पर ये अंतिम जीत थी। उसके बाद उसका यहां अब तक खाता नहीं खुला है। इस चुनाव में भाकपा ने 9 और माकपा ने 3 प्रत्याशी उतारे थे। भाकपा का इस चुनाव में खाता नहीं खुला। उसे 0.19 फीसदी वोट मिले।
आगे के चुनाव का हाल
1977 के आम चुनाव में वामदलों का यहां गहरा झटका लगा। इंदिरा विरोधी लहर में वामदलों के प्रत्याशियों को भी हार का सामना करना पड़ा। अमरोहा से भारतीय लोकदल (बीएलडी) प्रत्याशी चंद्रपाल सिंह ने जीत दर्ज की। भाकपा प्रत्याशी इशहाक संभली तीसरे नंबर पर रहे। वहीं माकपा प्रत्याशी शराफत हुसैन चौथे स्थान पर लुढ़क गए। इस चुनाव में मिली करारी हार के बाद वामदलों ने इस सीट पर हुए अगले 11 आम चुनाव में अपना प्रत्याशी ही मैदान में नहीं उतारा। 1971 के चुनाव में मिली जीत सीट पर वामदलों की आखिरी जीत साबित हुई।