नई दिल्ली: केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान के निधन के बाद बिहार विधानसभा चुनाव में अनिश्चितता का एक और तत्व शामिल हो गया है. वहीं, एनडीए के घटक दल JD (U) के खिलाफ सभी सीटों पर लोक जनशक्ति पार्टी (LJP) के अपने उम्मीदवार उतारने की घोषणा करने के बाद से ही यह चुनाव अनिश्चितताओं वाला हो गया था.
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि बहुत कुछ इस बात पर निर्भर करेगा कि लोजपा के निष्ठावान दलित मतदाता पासवान के बेटे तथा उनके वारिस चिराग पासवान के साथ किस तरह का जुड़ाव महसूस करते हैं. केंद्रीय मंत्री पासवान के निधन के कारण मतदाताओं के बीच हमदर्दी की भावना भी पैदा हो सकती है.
बिहार के एक नेता ने कहा कि एलजेपी अध्यक्ष एवं लोकसभा सदस्य चिराग (37) के सामने ऐसा कोई युवा दलित नेता नहीं है, जिसकी पूरे राज्य में पहुंच हो. उन्होंने नाम जाहिर नहीं होने की शर्त पर कहा, ”इस बात पर बहुत कुछ निर्भर करेगा कि चिराग खुद को किस तरह से पेश करते हैं. उनके पिता जमीन से जुड़े व्यक्ति थे और आम लोगों की भाषा बोलते थे. अब मतदाता पहले के मुकाबले चिराग की तरफ और ध्यान देंगे.”
पासवान के निधन के बाद अपने भविष्य पर संभावित प्रभाव को लेकर अगर कोई दल सबसे अधिक चौकन्ना है, तो वह है मुख्यमंत्री नीतीश कुमार नीत जनता दल (यूनाटेड). दोनों दलों के बीच कई मुद्दों को लेकर पहले से विवाद चल रहा है.
रामविलास पासवान के निधन से कुछ घंटे पहले, गुरुवार को लोजपा ने चिराग द्वारा भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा को लिखा पत्र जारी किया था, जिसमें उन्होंने आरोप लगाया था कि कुमार ने उनके पिता का अपमान किया और दावा किया कि बिहार के मतदाताओं के बीच उनके (नीतीश के) खिलाफ नाराजगी की लहर है. हालांकि, इन आरोपों पर जद(यू) की ओर से कोई जवाब नहीं आया है.
राज्य के दलितों से पासवान का जुड़ाव पांच दशक से भी पुराना है. अब, उनका निधन हो गया और विधानसभा चुनाव हो रहे हैं, तो ऐसे में कोई भी विरोधी दल लोजपा और उसके युवा तुर्क पर हमला करने का खतरा मोल नहीं लेना चाहेगा.
लोजपा खुद को चुनाव के बाद के परिदृश्य में भाजपा की सहयोगी तथा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मजबूत समर्थक के रूप में प्रस्तुत कर रही है, साथ ही वह जद(यू) पर लगातार निशाना साध रही है. सत्तारूढ़ एनडीए में बीजेपी और जेडीयू सहयोगी दल हैं.
बीजेपी ने राज्य में नीतीश कुमार के नेतृत्व पर विश्वास व्यक्त किया है, लेकिन अब वह एलजेपी के साथ समीकरणों को लेकर दोगुनी सतर्कता बरतेगी. बता दें कि प्रधानमंत्री मोदी अपनी सरकार का पक्ष रखने के लिए अक्सर रामविलास पासवान पर भरोसा करते थे और कई बार तो अनौपचारिक रूप से दलित मुद्दों पर उनके जरिए सरकार का संदेश जनता तक पहुंचाते थे.
बीजेपी नेतृत्व पिछले कई वर्षों से रामविलास पासवान को अपना विश्वस्त सहयोगी बताता रहा है और वह उनकी पार्टी के साथ संबंधों में खटास नहीं लाना चाहेगा, जिसकी कमान अब पूरी तरह से चिराग के हाथ में है. स्वयं चिराग भी मोदी के पुरजोर समर्थक माने जाते हैं.
लोकसभा में जमुई का दूसरी बार प्रतिनिधित्व कर रहे चिराग जद (यू) से अलग होने का ऐलान करते हुए इस बात की भी घोषणा कर चुके हैं कि उनकी पार्टी उन सभी सीटों पर किस्मत आजमाएगी, जिन पर जद (यू) अपने उम्मीदवार उतार रही है. जबकि वह बीजेपी के खिलाफ अपने उम्मीदवार नहीं उतारेगी.