उत्तराखंड को पिछले 4 महीने में तीसरा मुख्यमंत्री मिल गया है। पुष्कर सिंह धामी राज्य के नए मुख्यमंत्री होंगे। शुक्रवार को इस्तीफा देने वाले तीरथ सिंह रावत ने भाजपा विधायक दल की बैठक में धामी के नाम का प्रस्ताव रखा था। इसे मंजूरी दे दी गई। सूत्रों के मुताबिक, पुष्कर सिंह धामी आज ही राज्य के मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ ले सकते हैं।
भाजपा के युवा नेता पुष्कर सिंह धामी ऊधमसिंह नगर जिले की खटीमा सीट से लगातार दूसरी बार विधायक हैं। तीरथ सिंह रावत के इस्तीफा देने के बाद भाजपा ने आज देहरादून में पार्टी विधायक दल की बैठक बुलाई थी। केंद्र की तरफ से कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर को बैठक के लिए पर्यवेक्षक बनाया गया था। उनकी मौजूदगी में ही धामी के नाम का ऐलान हुआ।
हमेशा विवादों से दूर रहे हैं धामी
पुष्कर सिंह धामी के बारे में राजनीतिक जानकारों का कहना है कि यह एक ऐसा नाम है जो हमेशा विवादों से दूर रहा है। पुष्कर सिंह धामी भ्रष्टाचार जैसे मुद्दे पर काफी जोरशोर से आवाज उठाते रहे हैं। युवाओं के बीच पुष्कर सिंह धामी की अच्छी पकड़ मानी जाता है। राजपूत समुदाय से आने वाले धामी को RSS का करीबी माना जाता है। वे महाराष्ट्र के राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी के भी नजदीकी हैं।
ABVP और युवा मोर्चा में काम कर चुके हैं
पुष्कर सिंह धामी का जन्म 16 सितंबर 1975 को पिथौरागढ के टुण्डी गांव में हुआ था। उन्होंने मानव संसाधन प्रबंधन और औद्योगिक संबंध में मास्टर्स किया है। वे 1990 से 1999 तक ABVP में अलग-अलग पदों पर काम कर चुके हैं। धामी 2002 से 2008 तक युवा मोर्चा के प्रदेशाध्यक्ष भी रहे हैं। राज्य की भाजपा 2010 से 2012 तक शहरी विकास परिषद के उपाध्यक्ष रहे। वे 2012 में पहली बार विधायक चुने गए थे।
विवादित बयानों से चर्चा में रहे तीरथ
बतौर मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत का 114 दिन का कार्यकाल उनके विवादित बयानों के लिए ज्यादा जाना जाएगा। फटी जींस से लेकर 20-20 बच्चे वाले उनके बयानों को शायद ही कोई भूला हो। पद संभालते ही भावावेश में तीरथ कुछ का कुछ बोलते रहे।
कुंभ के दौरान उन्होंने संतों को खुश करने के लिए जिस तरह से कोरोना के नियमों में छूट देने का अधिकारियों को इशारा किया, उससे हिंदुओं का यह मेला कोरोना का हॉटस्पॉट बन गया। यही नहीं, कोर्ट की आंखों में धूल झोंकने के लिए BJP के करीबियों द्वारा सैंपलिंग और टेस्टिंग में जिस तरह से फर्जीवाड़ा किया गया, उससे तीरथ सरकार की छवि को बट्टा ही लगा।
तीरथ सिंह ने त्रिवेंद्र सरकार के गैरसैंण मंडल बनाने के विवादित फैसले को पलटकर कुमायूं मंडल में उपजे विरोध को जरूर शांत किया, लेकिन चारधाम देवस्थानम बोर्ड को खत्म करने के बारे में घोषणा करने के बावजूद अमल नहीं कर सके। इससे ब्राह्मण समुदाय खुद को ठगा सा महसूस करने लगा। तीरथ सिंह ने त्रिवेंद्र सरकार की तरह सिर्फ खास समुदाय के लिए कुछ किया हो ऐसा तो नहीं हुआ, लेकिन चुनावी साल में वे कुछ भी ऐसा नहीं कर सके, जिससे BJP की संभावनाओं को बल मिलता हुआ दिखे।
उपचुनाव के लिए भी तीरथ कमजोर लग रहे थे
प्रदेश में विकास कार्यों की गति तो तीरथ शासन में पहले से भी धीमी हो गई। सीधे-साधे व्यक्तित्व वाले तीरथ कहीं से भी BJP के लिए इलेक्शन मैटेरियल साबित नहीं हो सके। अगर उन्हें उपचुनाव में भी जाना पड़ता तो कोई सीट ऐसी नहीं दिख रही थी, जिस पर तीरथ की जीत की गारंटी हो। यही बात तीरथ के सबसे अधिक खिलाफ गई।