नई दिल्ली वैज्ञानिकों के अनुसार, जंगली चिम्पांजी खुद को ठीक करने के लिए दर्द निवारक और बैक्टीरिया रोधी गुणों वाले पौधे खाते हैं। उन्होंने युगांडा के जंगलों में घायल या बीमार दिखने वाले जानवरों का निरीक्षण करके यह पता लगाया कि क्या वे पौधों के साथ खुद का इलाज कर रहे हैं या नहीं। जब कोई घायल जानवर जंगल से खाने के लिए कुछ खास खोजता था, तब शोधकर्ताओं ने उस पौधे के नमूने जमाकर उसका विश्लेषण किया। परीक्षण किए गए अधिकांश पौधों में बैक्टीरिया रोधी गुण मिले।
वैज्ञानिकों का मानना है कि चिम्पांजी नई दवाओं की खोज में भी मदद कर सकते हैं। ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के प्रमुख शोधकर्ता डॉ. एलोडी फ्रीमैन ने कहा, हम इन जंगलों में हर चीज के औषधीय गुणों का परीक्षण नहीं कर सकते हैं। तब क्यों न उन पौधों का परीक्षण किया जाए जिनके बारे में हमें जानकारी है, वे पौधे जिन्हें चिम्पांजी खोज रहे हैं? इस दौरान बीमारी और संक्रमण की जांच के लिए मल और मूत्र के नमूने जमा किए। उन्होंने इस बात पर ध्यान दिया कि जब कोई घायल या बीमार चिम्पांजी कुछ ऐसा खोज रहा था जो वे आमतौर पर नहीं खाते, जैसे पेड़ की छाल या फलों का छिलका।
डॉ. फ्रीमैन ने बताया कि कैसे एक लंगड़ाते चिम्पांजी के जरिए उन्होंने क्रिस्टेला पैरासिटिका नामक एक फर्न पौधा खोज, जिसमें शक्तिशाली एंटी-इंफ्लेमेटरी गुण पाए गए। कुल मिलाकर, शोधकर्ताओं ने 13 विभिन्न पौधों की प्रजातियों से 17 नमूने एकत्र किए और उन्हें जर्मनी में न्यूब्रांडेनबर्ग यूनिवर्सिटी ऑफ एप्लाइड साइंसेज में डॉ. फैबियन शुल्ट्ज द्वारा परीक्षण के लिए भेजा। इससे पता चला कि लगभग 90 प्रतिशत अर्क ने बैक्टीरिया के विकास को रोक दिया, और एक तिहाई में प्राकृतिक एंटी-इंफ्लेमेटरी गुण थे। इससे साफ हैं कि वे दर्द को कम कर सकते हैं और उपचार को बढ़ावा दे सकते हैं। रिपोर्ट किए गए सभी घायल और बीमार चिम्पांजी पूरी तरह से ठीक हो गए, डॉ. फ्रीमैन ने खुशी जताकर बताया, कि जिसने फर्न खाया वह अगले कुछ दिनों में फिर से अपने हाथ का इस्तेमाल कर रहा था।