अक्षय की ‘पैडमैन’ सबने देखी लेकिन जिस पर फिल्म बनी क्या उसे जानते हैं, ये हैं वो ‘सिरफिरे’

अक्षय कुमार की बात ही औरों से कुछ अलग है। सामाजिक मुद्दों से प्रेरित होकर उसके ऊपर फिल्में बनाने के मामले में अक्षय के सामने कोई भी कलाकार नही टिकता। सामाजिक मुद्दों के ऊपर एक से बढ़कर एक फिल्मे बनाने की वजह से आज लोगो के बीच अक्षय काफी प्रसिद्ध हो चुके है। अब तक 100 से ज्यादा फिल्मो में काम कर चुके अक्षय की एक फ़िल्म “पैडमैन” काफी खास थी। ये एक ऐसे आम इंसान पर आधारित थी जिसने बेहद खास काम किया। असल जिंदगी में “पैडमैन” की भूमिका निभाने वाले इस शख्स के बारे में आज हम आपको बताने वाले है जिनकी काम से प्रभावित होकर अक्षय ने इस फ़िल्म को बनाने का निर्णय लिया।

कौन है असली पैडमैन?

तमिलनाडु के रहने वाले अरुणाचलम मुरुगनाथम इस दुनिया के असली पैडमैन है। महिलाओं से जुड़ी सामाजिक समस्या का हल करने के लिए बेहद ही कम कीमत में महिलाओं के लिए पैड बनाने मशीन का अविष्कार कर उन्होंने एक मिशाल पेश की है। बेहद ही गरीब परिवार में जन्म लेने वाले अरुणाचलम का जन्म बेहद ही गरीबी में गुजरा। बचपन मे ही पिता के देहांत हो जाने के बाद अरुणाचलम के घर का हालात और भी बेहद खराब हो गए। उनकी माँ ने उन्हें किसी तरह पाल पॉश कर बाद किया। 14 साल की उम्र तक जाते जाते उन्होंने स्कूल को पीछे छोड़कर इधर उधर नौकरी की तलाश में भटकने लगे।

नौकरी की तालाश में इधर उधर भटकते हुए अरुणाचलम को काफी वक्त बीत गया और वही उनकी उम्र भी दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही थी। इस वजह से उनकी माँ ने उनकी शादी करवाने का फैसला ले लिए। शादी हो जाने के बाद वह अपनी पत्नी के साथ जिंदगी जीने में व्यस्त थे। पर एक दिन उनकी पत्नी शांति की हरकत को देख उनका मन सिहर उठा और इसके बाद उन्होंने महिलाओं की जिंदगी ही पूरी तरह बदल दी।

बीवी के लिए बनाया पैड

दअरसल अरुणाचलम ने एक दिन देखा कि उनकी पत्नी अनपढ़,अशिक्षित और गरीब होने की वजह से पीरियड्स के दौरान बेहद ही गंदे कपड़ो का इस्तेमाल किया करती थी। वक़्त बीतता गया और उन्हें एक दिन किसी के सहारे सेनेटरी नैपकिन के बारे में जानकारी मिली। जानकारी मिलने के बाद वह बेहद ही हैरान रह गए क्योंकि यह पहली बार था जब वह ऐसी बाते सुन रहे थे। उन दिनों सेनेटरी नैपकिन बहुत महंगी हुआ करती थी और ब्रांडेड होने की वजह से अक्सर महिलाएं इन्हें खरीद भी नही पाती थी।इस विचार को मन मे रखते हुए उन्होंने खुद की सस्ती सेनेटरी नैपकिन बनाने की ठानी और उन्होंने कर दिखाया कुछ ऐसा।

महिलाओं की सुरक्षा के लिए सेनेटरी मशीन बनाने की ठान चुके अरुणाचलम दिन प्रतिदिन उसके बारे में बाई नई जानकारियाँ जुटाने में लग गए। सारी जानकारियों को जुटाने के बाद उन्होंने किसी तरह इसका निर्माण भी कर लिअम्ब उनके सामने बाधा यह थी कि अब उस सेनेटरी नैपकिन का इस्तेमाल करके उसके अच्छे और बुरे परिणामो के बारे में उन्हें कौन बताएगा। इसके लिए उन्होंने आसपास के गावँ में पढ़ने वाली कॉलेज की लड़कियो से इसका इस्तेमाल करने का अनुरोध करने लगे।

वक़्त के साथ उनकी मेहनत रंग लाई और समाज मे बढ़ती जागरूकता की वजह से लड़कियाँ इसका इस्तेमाल कर उन्हें अपना फीडबैक देने लगी। फीडबैक मिलने के बाद अरुणाचलम दिन प्रतिदिन उसमे बदलाब लाने लगे।  आज ऐसा वक़्त है कि आज उनके द्वारा बनाई गई सैनिटरी पैड का इस्तेमाल लगभग 4500 गाँव के लोग करते है और उनके द्वारा बनाई गई सेनेटरी नैपकिन के दाम भी अन्य कंपनियों के मुकाबले काफी कम होते है।

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