नई दिल्ली । केदारनाथ धाम के ऊपर मौजूद सुमेरू पर्वत से 30 जून 2024 को हिमस्खलन हुआ। लेकिन ऐसा क्यों? कहीं ऐसा न हो कि इस बार आपदा पानी के बजाय पहाड़ से गिरने वाले बर्फ के रूप में न हो। उत्तराखंड सरकार ऊंचाई पर मौजूद 13 ग्लेशियल लेक्स की स्टडी करवा रही है। ताकि होने वाले खतरों की तैयारी की जा सके। इन लेक्स के टूटने या फटने पर निचले इलाकों में 2013 जैसी आपदा आ सकती है। उत्तराखंड में ऐसी कई ग्लेशियल लेक्स हैं, जो संवेदनशील हैं।
इनकी वजह से ग्लेशियल लेक्स आउटबर्स्ट फ्लड आने का खतरा बना हुआ है। जिन 13 ग्लेशियल लेक्स की स्टडी होनी है, इसमें से पांच हाई रिस्क जोन में है। इसमें पिथौरागढ़ जिले के डर्मा, लसारींगघाटी, कुटियांगटी घाटी और चमोली जिले के धौली गंगा बेसिन में मौजूद वसुंधरा ताल हाई रिस्क में है। ये सभी झीलें 0.02 से 0.50 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल के हैं।
भारतीय मौसम विज्ञान विभाग ने चेतावनी जारी की है कि जुलाई महीने में पश्चिमी हिमालय में भारी बारिश और बाढ़ की आशंका है। पश्चिमी हिमालयी राज्यों और उनकी नदियों के बेसिन में जलस्तर तेजी से बढ़ सकता है। क्योंकि देश की कई प्रमुख नदियां हिमालय से निकलती हैं। मौसम विभाग के प्रमुख मृत्युंजय मोहापात्रा ने कहा है कि हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, जम्मू और कश्मीर, पश्चिमी हिमालय के निचले इलाकों में सामान्य से ज्यादा बारिश का अनुमान है। यहां पर बादल फट सकते हैं।
इतना ही नहीं ये सभी ग्लेशियल लेक्स 4000 मीटर यानी 13,123 फीट से ज्यादा की ऊंचाई पर हैं। इन बर्फीली झीलों की स्टडी भी अपने आप में एक खतरनाक काम है। ऐसी झीलों की वजह से उत्तराखंड में पिछले कुछ वर्षों में दो प्रमुख हादसे हुए हैं। पहला जून 2013 में केदारनाथ में ग्लेशियल लेक्स के टूटने से फ्लैश फ्लड आई। इसके बाद फरवरी 2021 में ऋषिगंगा घाटी में ऐसी ही घटना हुई।
वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी की रिपोर्ट आई थी। जिसका नाम है, ग्लेशियर लेक इन्वेंट्री ऑफ उत्तराखंड। इसमें उन सभी ग्लेशियल लेक्स के बारे में बताया गया है, जो उत्तराखंड में काफी ऊंचाई पर हैं। ये अलग-अलग बेसिन के ऊपर हैं. उत्तराखंड में कुल मिलाकर 1266 ग्लेशियल लेक्स हैं।